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वो नज़र नज़र भर क्या देखें
वो रुका समंदर क्या देखें

जो पत्थर जैसा मिला सदा
दिल उसके अन्दर क्या देखें

कोई उनके जैसा बना नहीं
हम तुम्हें पलटकर क्या देखें

हमने तो हंस के छोड़ा सोना
ये कौड़ी चिल्लर क्या देखें

वो चाँद बुझा कर जा सोये
हम तारे गिनकर क्या देखें

टूट गये गुल गईं बहारें
अब उजड़ा मंज़र क्या देखें

-पुष्यमित्र उपाध्याय

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Comment by Dr.Prachi Singh on November 23, 2012 at 10:13pm

बहुत सुन्दर दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल पुष्यमित्र जी . हार्दिक बधाई 

Comment by वीनस केसरी on November 23, 2012 at 1:32am

सुन्दर प्रयास
हार्दिक बधाई

Comment by akhilesh mishra on November 22, 2012 at 1:31pm

बहुत सुंदर रचना ।बधाई स्वीकारें ।

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