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नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती

देख-देख दुनिया हँसी, मन ही मन में कोसती |
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

कैसा गड़बड़झाल ये, जाने कैसा खेल है,
लोटे औ जलधाम का, होता कोई मेल है |
आ जाएगा घूम के, सबकी खोपड़ सोचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

पौधा है नवजात ये, कोमल इसकी डाल है,
हट्टा-कट्टा पेड़ तो, मानो गगन विशाल है |
बुढ़िया काकी देख के, उँगली मुँह में खोंसती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

पौधा सच्चा शेर था, चलता अपनी चाल से,
ना की उनकी जात में, जो डरते कंकाल से |
बंदरियों की खीस भी, उतरी खुद को नोंचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

पौधे ने जैसा कहा, ठीक वैसा काम किया,
वीर जान के पेड़ ने, भी सादर प्रणाम किया |
अंड-बंड बकता रहा, बगल में बैठा पोस्ती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

(चित्र स्वयं के द्वारा बनाया हुआ)

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:17am

आदरणीया रेखा जी.........सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:16am

आदरणीय रक्ताले सर......आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:16am

हार्दिक आभार आदरणीय अब्दुल लतीफ खान जी......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:14am

आदरणीया राजेश जी....कविता के मूल भावों को पहचान के उनकी सराहना करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 9:57am

पौधा सच्चा शेर था, चलता अपनी चाल से,
ना की उनकी जात में, जो डरते कंकाल से |
बंदरियों की खीस भी, उतरी खुद को नोंचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

 सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई  गौरव जी

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:21am

सुन्दर रचना गौरव जी बधाई स्वीकार करें.

Comment by लतीफ़ ख़ान on October 16, 2012 at 10:55pm

Aap ke dwara rachit chitra ewam kawya aap ke prakriti prem ko darsata hai...paryawaran ke prati aap ki jagrukta nisandeh prashanshneey hai...........kotishah badhs rahasaiyaan....ek doha .....jadi bootiyan nasht hueen,madhuras raha na yaad..char chiroungi tendu ke, bachche bhoole swaad


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Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 7:53pm

आत्मविश्वास का कोई कद नहीं होता आपकी कविता का सार है ये पौधे और पेड़ के बिम्ब के माध्यम से एक सार्थक गहरी बात समझाई है बहुत सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 6:25pm

आदरणीया प्राची दीदी.......आपने कविता और चित्र दोनों को पसंद किया....जान के बहुत खुशी हुई.........आपका हार्दिक आभार........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 6:25pm

आदरणीय लक्ष्मण सर.......उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार........

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