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कविता : हालत हो गयी है अपनी भूटान की तरह.

आमदनी घट रही है,होंठों से मुस्कान की तरह.
और खर्चे बढ़ रहे है, चौराहे पे दूकान की तरह.
भले ही रहते है यारों हम आलीशान की तरह.
पर हालत हो गयी है अपनी भूटान की तरह.

अरे किस से सुनाये दर्द,जब सबका यही हाल है.
ये बेबस जिंदगी उधार की,बस जी का जंजाल है.
बड़ी मुश्किल से लोग,हंसने का रस्म निभाते है.
वरना चुटकुले भी आँखों में आंसू भर के जाते है.
खुशिया लगती है सुनी,मातम के सामान की तरह.
और हालत हो गयी है अपनी, भूटान की तरह.

महंगाई के खौफ में,क्या खाक मजा है जीने में.
हसरतें बेजान होकर सड़ रही है सीने में.
आज एक लड़ाई खुद से ही लड़ रहा है आदमी.
थका-थका है फिर भी आगे बढ रहा है आदमी.
दिन-ब-दिन मिट रहा सुकून भी, ईमान की तरह.
और हालत हो गयी है अपनी, भूटान की तरह.

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Comment by Noorain Ansari on September 28, 2012 at 3:46pm

बहूत बहूत धन्यवाद लक्ष्मण जी..

Comment by Noorain Ansari on September 28, 2012 at 3:45pm

बहूत बहूत धन्यवाद केशरी जी..

Comment by वीनस केसरी on September 27, 2012 at 11:55pm

बहुत खूब
वर्त्तमान परिदृश्य को आपने बहुत सच्चे और सार्थक शब्दों से साकार किया है

दिन-ब-दिन मिट रहा सुकून भी, ईमान की तरह.

बहुत बहुत बहुत खूब

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 27, 2012 at 1:37pm

आज एक लड़ाई खुद से ही लड़ रहा है आदमी.
थका-थका है फिर भी आगे बढ रहा है आदमी.

बहुत गहरी सच्चाई, सुंदर पंक्तिया बधाई श्री नूरें अंसारी भाई 
Comment by Noorain Ansari on September 27, 2012 at 10:57am

सादर धन्यवाद राजेश जी.......हौसला अफजाई के लिए


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Comment by rajesh kumari on September 27, 2012 at 10:36am

महंगाई के खौफ में,क्या खाक मजा है जीने में.
हसरतें बेजान होकर सड़ रही है सीने में.
आज एक लड़ाई खुद से ही लड़ रहा है आदमी.
थका-थका है फिर भी आगे बढ रहा है आदमी----वाह वाह बहुत बढ़िया सामयिक कविता जबरदस्त लिखा बहुत बधाई नूरेन अंसारी जी 

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