तब से मेरी भारत माँ, बदहाल बहूत हैं.
मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत…
Added by Noorain Ansari on May 3, 2013 at 4:00pm — 14 Comments
दो कदम ही सही साथ,चलकर के देखों.
हम गरीबों की हालात, चलकर के देखों.
ऊँचे महलों से बारिस का मज़ा लेनेवालों,
तंग गलियों की बरसात,चलकर के देखों.
संसद के सोफे क्या समझेगे गावों का मर्म,
बेबस जनता की मुश्किलात,चलकर के देखों.
सुहागन से सदा बेवा का दर्द जाननेवालों,
कभी बिरह में एक रात, जलकर के देखों.
झूठे कसमों से इन्तखाब जीत जानेवालों,
छली जनता का जज्बात,चलकर के देखों.
ऐशों-आराम तय करते है मुकद्दर किल्लतों का,
सता से बाहर अपनी…
Added by Noorain Ansari on November 22, 2012 at 3:13pm — 4 Comments
आमदनी घट रही है,होंठों से मुस्कान की तरह.
और खर्चे बढ़ रहे है, चौराहे पे दूकान की तरह.
भले ही रहते है यारों हम आलीशान की तरह.
पर हालत हो गयी है अपनी भूटान की तरह.
अरे किस से सुनाये दर्द,जब सबका यही हाल है.
ये बेबस जिंदगी उधार की,बस जी का जंजाल है.
बड़ी मुश्किल से लोग,हंसने का रस्म निभाते है.
वरना चुटकुले भी आँखों में आंसू भर के जाते है.
खुशिया लगती है सुनी,मातम के सामान की तरह.
और हालत हो गयी है अपनी, भूटान की तरह.
महंगाई के…
Added by Noorain Ansari on September 27, 2012 at 9:30am — 6 Comments
आज लड़ रहे है भाई-भाई,बन के हिन्दू मुसलमान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
काबा और कैलाश के रोज मुद्दे उछल रहे है.
इनके आंच पे गावं-नगर-कसबे जल रहे है.
सिसक रही है इंसानियत,खोकर अपना आत्मसम्मान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
इस्मत लूटी जा रही है,सरेआम आज नारी की.
बढ़ रही है रोज आबादी, गुंडे बलात्कारी की.
बेबस लाचार जनता की,बड़ी मुश्किल में है प्राण.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.…
Added by Noorain Ansari on August 22, 2012 at 8:00am — 1 Comment
Added by Noorain Ansari on July 18, 2012 at 4:52pm — 5 Comments
माना की बहूत दर्द है आज हमारे सीने में,
पर महज तड़प से नहीं बदलेगी,हालात दोस्तों,
कुछ ना पावोगे उम्मीदों की महफ़िल सजाने से,
जब तक हो ना उसपे अमल की बरसात दोस्तों.
कल का चेहरा दुनिया में देखा है किसने अबतक,
जो भी करना है कर दो…
Added by Noorain Ansari on February 24, 2012 at 6:30pm — 2 Comments
Added by Noorain Ansari on October 20, 2011 at 9:06am — 4 Comments
Added by Noorain Ansari on September 19, 2011 at 1:30pm — No Comments
अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
रोते-बिलखते लोगों को फिर एक बार हंसाये हम.
जो अब तक सही आजादी पाने से महरूम है.
जो अपने घर में आज भी बेबस लाचार मजलूम है.
स्वतंत्र देश में जकड़े है जो गुलामी की जंजीरों से.
खेलते है देश के नेता जिनके मासूम तकदीरों से.
जो तन्हा भूखे-नंगे सोते है आसमान के नीचे.
उनके बंजर चेहरों को आओ मिलकर सींचे.
उनके रहने खातिर एक आशिया बनाये हम.
अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
उखाड़ फेके…
ContinueAdded by Noorain Ansari on August 15, 2011 at 9:30am — 5 Comments
काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
घबडाते नहीं है अब हम तो गम के आने-जाने से.
हाँ,चौक जरूर जाते है खुशियों के झलक दिखाने से,
अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट गये.
अब तो बदनामों से ज्यादा मक़बूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
अफ़सोस,ये जिंदगी दुनिया के रंग में हम ऐसे घूल…
ContinueAdded by Noorain Ansari on August 3, 2011 at 7:30pm — 6 Comments
Added by Noorain Ansari on June 7, 2011 at 11:00am — No Comments
दिल की बात आँखों से बताना अच्छा लगता है.
झूठा ही सही पर आपका बहाना अच्छा लगता है.
छू जाती है धडकनों को मुस्कराहट आपकी,
फिर शरमा के नज़रे झुकाना अच्छा लगता है.
मुरझे फूलों में ताजगी आती है आपको देखकर,
आप संग हो तो मौसम सुहाना अच्छा लगता है.
बिन बरसात के ही अम्बर में घिर आते है बादल,
आपकी सुरमई जुल्फों का लहराना अच्छा लगता है.
जंग तन्हाई के संग हम लड़ते है रात-दिन,
देर से ही सही पर आपका आना अच्छा…
ContinueAdded by Noorain Ansari on May 24, 2011 at 1:00pm — 3 Comments
Added by Noorain Ansari on October 8, 2010 at 12:30pm — 2 Comments
Added by Noorain Ansari on September 30, 2010 at 3:23pm — 1 Comment
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