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नैनों तेरी छवि बसी, मन तेरे गुण गाए,
फिर काहे तू दामिनी, रूठ मुझे सताए |

पल भर तेरी दूरी, दे मुझको तड़पाए,
ठंढी-ठंढी आहें भरूँ, कहीं जिया न जाए |

बिन तेरे ऐसे लगे, फूल भी शूल चुभाए,
खुशी दूर से ही भागे, दिल भी डूबा जाए |

प्रेमी पर तो प्रेमिका, अपनी जान लुटाए,
एक तुझे ही मैं देखूँ, उल्टी हवा बहाए ||

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 23, 2012 at 10:33am
आदरणीय रक्ताले सर, आपका हार्दिक आभार।
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 22, 2012 at 12:09am

गौरव जी

            सादर, सुन्दर घनाक्षरी लिखी है किन्तु ऐसा लगता है कि इसे और भी अच्छा बनाया जा सकता था.

कृपया ध्यान दे...

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