परिवर्तन के नाम पर ,अलग -अलग है सोच
किसी ने वरदान कहा ,इसे किसी ने बोझ ||
परिवर्तन वरदान है ,या कोई अभिशाप
एक को बांटे खुशियाँ ,दूजे को संताप ||
विघटित करके देश के ,कई प्रांत बनवाय
महा नगर विघटित हुए ,इक -इक शहर बसाय||
शहर- शहर विघटित हुए ,और बन गए ग्राम
ग्रामों में गलियाँ बनी ,परिवर्तन से धाम||
घर बाँट दीवार कहे ,परिवर्तन की खोज
बूढ़े मात -पिता कहें ,ये छाती पर सोज ||
जो नियम भगवान् रचे ,वो वरदान कहाय
मौसमी परिवर्तन पर ,प्रकृति शीश नवाय||
कहीं -कहीं इंसान ने ,खूब किये हैं काम
परिवार नियोजित किये ,परिवर्तन के नाम ||
दोष पतन की खान हैं ,जाने सकल जहान
स्वभाव परिवर्तित करे ,वो इंसान महान ||
जो प्रकृति से छल करे ,स्वारथ हित में रोज
वो परिवर्तन तो बने ,उस जीवन पर सोज ||
परिवर्तन वरदान बन ,प्रगति प्रशस्त कराय
बसा रहा स्वारथ अगर ,काल गर्त बन जाय ||
********
Comment
बहुत सुन्दर रचना है आदरणीया राजेश कुमारी जी
बाकी का मेरे अग्रजों ने कह ही दिया है
गेयता की दृष्टि से थोडा कमजोर है भाव पक्ष प्रबल है
आपकी इस रचना को नमन
बहुत बहुत बधाई आपको
सतीश मापतपुरी जी प्रशंसा के लिय हार्दिक आभार
हार्दिक आभार आशीष जी
आदरेया राजेश कुमारी जी,
सुंदर सारे भाव हैं, पूरी मन की आस
मनभावन दोहे रचे, बेहतर हुआ प्रयास..
बहुत-बहुत बधाई .....
बहुत जरूरी गेयता, दूर करें यह दोष..
सीमाजी ने सच कहा, मन में नहिं संतोष.
आपके अधिकतर दोहों में यद्यपि मात्राएँ १३-११ ही हैं तथापि कुछ दोहे गेयता में नहीं आ पा रहे ......
मात्राओं की दृष्टि से 'स्वार्थ हित में रोज' (१०) के बजाय 'स्वारथ हित में रोज'(११) ठीक रहेगा .....
रोज-बोझ जैसे तुकांत शब्दों पर एक नजर वांछित है ....
किसी अच्छे दोहाकार को पढ़कर खूब अभ्यास करिये .....निखार स्वतः ही आने लगेगा .......
बहुत खुबसूरत दोहे ... बधाई राजेश कुमारी जी
परिवर्तन कितना हुआ, कितना बदला रंग।
दोहों से बतला दिया, रहा अनूठा ढ़ंग।।
सारे दोहे वाह जी, भाव भरे अनमोल।
मुझ पर भी तो ध्यान दो, शिल्प रहा यह बोल।।
बहुत अच्छे दोहे दोहे। परिवर्तन को खूब लिखा है। बस कहीं कहीं शिल्प में त्रुटि दिखती है।
बहुत-बहुत बधाई।
लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी आपकी प्रतिक्रिया सर आँखों पर हार्दिक आभार
बहुत बहुत आभार सीमा जी दोहों का इतना गहन विश्लेषण किया है बांटे किसी को खुशियाँ में मैंने तो १३ मात्रा ही गिनी हैं आप १४ कैसे बता रही हैं कृपया स्पष्ट करें
परिवर्तन के नाम पर ,अलग -अलग है सोच (१३-११)
किसी ने वरदान कहा ,इसे किसी ने बोझ इसमें गेयता कहाँ प्रभावित हो रही है प्लीज बताएं इसमें सम चरण में लघु गुरु भी लिया है फिर कहाँ गलत है
प्रिय दीप्ति तुम्हारे प्यार भरे शब्द मिले और क्या चाहिए हार्दिक आभार
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online