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पर्यावरण पर कुछ हाइकु

 नीर भरी थी 

विष्णुपदी  निर्मल 

क्लांत  है अब । 
 
***************
पेड़ों को काटा 
छीना था सरमाया 
धरती रोयी 
 
******************
 
धुआँ ही धुआँ 
शहर ढ़क गया
साँसे बेज़ार 

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Comment

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Comment by rajesh kumari on July 6, 2012 at 11:15pm

संगीता जी आपको ओ बी ओ पर देख कर बहुत ख़ुशी हो रही है आपकी रचनाएं यहाँ भी पढने को मिलेंगी ..बहुत सुन्दर हाइकु रचे हैं बधाई 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 6, 2012 at 10:43pm

नीर भरी थी 

विष्णुपदी  निर्मल 

क्लांत  है अब । 

आदरणीया संगीता स्वरुप जी बहुत सुन्दर हाइकु ..काश ये पावन हों ऊर्जा भरे क्लांत न हों ..अच्छा सन्देश गागर में सागर ..जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by AVINASH S BAGDE on July 6, 2012 at 8:42pm

धुआँ ही धुआँ 

शहर ढ़क गया
साँसे बेज़ार ...bahut khoob... हाइकु Sangeet swarup mam.
 
Comment by Rekha Joshi on July 6, 2012 at 5:15pm

संगीता जी ,

धुआँ ही धुआँ 
शहर ढ़क गया
साँसे बेज़ार ,पर्यावरण पर  सटीक हाइकू

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