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मैंने क्या किया?

मैं जानता हूं
आप कुछ नहीं कर सकेंगे
पढ़ कर, सोचेंगे थोड़ा
या हो सकता है
बिल्कुल भी नहीं देंगे ध्यान
सही भी है
आपकी भी अपनी हैं परेशानियां
ऐसे में मेरे लिए कहां होगा समय
लेकिन फिर भी बताता हूं आपको
अपने मन की बात
बहुत परेशान करती है
छोटी-छोटी बातें
हो कोई बड़ी समस्या
तो की जा सकती है तैयारियां
मांगी जा सकती है मदद
लेकिन क्या करूं
जब समस्याएं हो छोटी-छोटी और
फैला दूं हाथ - मांगू मदद
तब लगता है
आखिर अब मैंने क्या किया?
फिर जुटाता हूं हिम्मत
निकालता हूं समस्याओं का हल
लेकिन अचानक देखता हूं क्या
फिर आ गई एक और समस्या
शायद यही है जिंदगी का सफर
कभी आसान तो कभी कठिन
पहुंचना है सबको मंजिल पर अपनी
हो सकते है रास्ते अलग-अलग
परेशानियां, जुदा-जुदा
खुद तो हूं मैं परेशान
आपको भी कर दिया परेशान
लेकिन क्या करूं?
बस यूं ही
आप अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते
चलते जा रहे है अनंत की तलाश में
एक-दूसरे के सहयोग प्यार के सहारे.

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:40pm

वाह आदरणीय हरीश जी, कितनी सरलता से, सब कुछ कह दिया .बधाई.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 26, 2012 at 3:57pm

हरीश जी बहुत सुंदर कविता जीवन के आयामो को नया रंग देते और समस्याओं से रूबरू कराती रचना। बहुत बहुत बधाइयाँ!

Comment by Rekha Joshi on June 26, 2012 at 3:27pm

समस्या पर समस्या ,यही तो है जिंदगी ,अच्छी रचना ,बधाई 

Comment by Arun Sri on June 26, 2012 at 12:26pm

जीवन के सफर को क्या खूब निरूपित किया आपने ! समस्याए उनसे लड़ना थक जाना और फिर एक दूसरे का सहयोग यही उतार चदाव तो जीवन का दूसरा नाम है !


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Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2012 at 1:06am

जीवन के ऊहापोह और उसकी कश्मकश को उकेरती रचना के लिये बधाई, हरीशभाईजी.

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 25, 2012 at 11:40pm

हरीश भट्ट जी बेहेतरिन

अच्छे विषय पर बहुत अच्छी प्रस्तुति

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 25, 2012 at 10:07pm
आदरणीय हरीश सर, शायद यही जिँदगी है।
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 25, 2012 at 7:01pm

कैदे हयात ओ बन्दे गम असल में दोनों एक हैं... 

अच्छी रचना... सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 5:27pm

सम्मान्य हरीश भट्ट जी,
बहुत  सही और  नपा तुला सच आपने अपने काव्य में प्रस्तुत किया . विडम्बना भी   यही है और  सौभाग्य भी यही है कि  जीवनचक्र  यों ही चलता रहा है और यों ही चलता रहेगा .
___उम्दा कविता के लिए बधाई !

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