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ऐसा तो न सोचा था

यह क्या
ऐसा तो न सोचा था
यह तो धोखा हो गया
बच्चा समझ के बहलाया नानी ने
दूर एक ग्रह को बनाया था मामा
रोज रात में बताती थी मुझे
देखो आसमां में जो चमक रहा है
वह हैं सबका प्यारा चंदामामा
धीरे-धीरे अक्ल आने लगी
नानी का झूठ समझ आने लगा
क्यों बोला झूठ उन्होंने
बच्चा जान बहलाया मुझे
लेकिन कहते है
प्यार में होता है सब जायज
यह बात भी समझ आती है
जब बचाना होता है गृह अपना
तब लेता हूं झूठ का सहारा
और कहता हूं अपनी प्रेयसी से
चांद जैसे मुखडे़ पर
बिंदिया है तेरी सितारा
वह भी जानती है और मैं भी
पर क्या जाता है प्यार में
अगर कोई रूठा मान जाए
जैसे नानी कराती थी चुप मुझे
वैसे ही मनाता हूं अपनी प्रेयसी को
लेकर झूठ का सहारा
यह क्या
धोखा खाकर धोखा दे रहा
ऐसा न तो सोचा था मैंने.

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on April 4, 2012 at 2:06pm

बड़े  ही कोमल भावों को पकडा  है श्री हरीश जी आपने इस मनभावन रचना के लिए हार्दिक साधुवाद आपको !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 4, 2012 at 1:35pm

लेकर झूठ का सहारा
यह क्या 
धोखा खाकर धोखा दे रहा
ऐसा न तो सोचा था मैंने.

vah harish sir ji, khoob kaha. nani aur preyasi , badhai

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