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कहाँ गई वो मेरे देश की खुशबु

जिसमे सराबोर  रहते थे

इंसानों के देश प्रेम के जज्बे ,

कहाँ गई वो माटी की सुगंध

जिससे जुडी रहती थी जिंदगी  

कहाँ गए वो आँगन 

जिनमे हर रोज जलते थे 

सांझे चूल्हे 

जहां बीच में रंगोली सजाई जाती थी 

जो परिचायक थी 

उस घर की एकता और सम्रद्धि की 

जिसमे खिल खिलाता था बचपन 

लगता है वक़्त की ही 

नजर लग गई उसको 

आधुनिकता नामक विष 

घुल गया वहां के परिवेश में 

विघटित हो गए आँगन 

विघटित हो गए 

बंधन 

हर जगह बीच में

दीवार नजर आती है 

बस अहम् जी रहा है 

कहाँ जा रही हैं 

इस युग की सीढियां 

पता नहीं ऊपर या नीचे !!!

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2012 at 10:12pm

हाँ अविनाश जी सही कह रहे हैं ये अहम् की कालिमा में छिप गए हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2012 at 10:11pm

बहुत बहुत शुक्रिया योगी सारस्वत जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2012 at 10:10pm

हाँ संदीप कुमार जी हमे आधुनिकता के सही मायने समझने होंगे बारूद के ढेर पर बैठ कर उसे ही कुरेद रहे हैं हम संवेदन हीनता बढ़ रही है व्यवहार में 

Comment by AVINASH S BAGDE on June 21, 2012 at 3:43pm

कहाँ गए वो आँगन 

जिनमे हर रोज जलते थे 

सांझे चूल्हे .....ye rat ki kalima ke aagosh me ja chuke hai.

Comment by Yogi Saraswat on June 21, 2012 at 3:07pm

हर जगह बीच में

दीवार नजर आती है 

बस अहम् जी रहा है 

कहाँ जा रही हैं 

इस युग की सीढियां 

पता नहीं ऊपर या नीचे !!!

bahut sundar chitran aaj ke samaaj ka

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 21, 2012 at 10:01am

is yug ki seedhiyon ki jaanch chal rahi hai mahodyaa ji ...................aadhunikta ke naam par na jaane kya kya ho rha hai ........................par wo adhunikta nahi mahaj ashbhyta hai ...............sadhuwaad aapko sundar rachna hetu ......bahut bahut badhai


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2012 at 9:05am

हार्दिक आभार अलबेला जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2012 at 9:04am

हार्दिक शुक्रिया डा.सूर्या बाली जी 

Comment by Albela Khatri on June 21, 2012 at 8:42am

ऊपर  तो नहीं जा रही  है राजेश कुमारी जी,
ये पक्का है
हाँ नीचे जाने के आसार लग रहे हैं.........
बहरहाल इस उत्तम रचना के लिए अभिनन्दन  स्वीकार करें............
__जय हो !

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2012 at 11:17pm

कहाँ जा रही हैं 

इस युग की सीढियां 

पता नहीं ऊपर या नीचे !!

....राजेश कुमारी जी बहुत सुंदर भाव लिए हुए ये रचना। बहुत अच्छी लगी । बहुत बहत बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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