For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल:खुदाई जिनको

खुदाई जिनको आजमा रही है,
उन्हें रोटी दिखाई जा रही है.

शजर कैसे तरक्की का हरा हो,
जड़ें दीमक ही खाए जा रही है.

राम उनके भी मुंह फबने लगे हैं,
बगल में जिनके छुरी भा रही है .

कहाँ से आयी है कैसी हवा है ,
हमारी अस्मिता को खा रही है.

तिलक गांधी की चेरी जो कभी थी ,
सियासत माफिया को भा रही है.

हाई-ब्रिड बीज सी पश्चिम की संस्कृति ,
ज़हर भी साथ अपने ला रही है .

शेयर बाज़ार ने हमको दिया क्या ,
गरीबी और बढती जा रही है.

बिना लंगर सफर को निकली कश्ती ,
भंवर में आज खुद को पा रही है.

चलो विद्रोह का छेड़ें तराना ,
ये सत्ता राग मद के गा रही है.

Views: 444

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 1, 2010 at 4:36pm
बिना लंगर सफर को निकली कश्ती ,
भंवर में आज खुद को पा रही है.

अरुण जी नमस्कार...अच्छी रचना है....खूबसूरती से साथ कही गयी एक एक शेर मुझे पसंद आया...वाकई ज़ोरदार रचना है.....
Comment by आशीष यादव on September 28, 2010 at 4:49am
Ishq mohabbat se nikal kar aaj ki duniya par yah khubsurat ghazal h. Dhanyawad swikar kare.
Comment by Abhinav Arun on September 27, 2010 at 3:03pm
पूजा जी और बागी जी को धन्यवाद ! अपने पढ़ा और टिप्पणी भी की .इससे यकीनन हौसला बढ़ता है .
Comment by Pooja Singh on September 27, 2010 at 11:44am
अरुण जी ,
नमस्कार बहुत बढिया गजल है , ये पंक्ति ज्यादा अच्छी लगी |{हाई-ब्रिड बीज सी पश्चिम की संस्कृति ,
ज़हर भी साथ अपने ला रही है .}
Comment by chetan prakash on September 27, 2010 at 6:33am
'जिनके हाथों में चाक -बत्ती न थी, उनके हाथों में उनके हाथों में रौशनी आ गई
जिनके हाथों में होंसला न था , उनके हाथों में लाल -बत्ती आ गई 'abhinav'

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 26, 2010 at 1:39pm
बिना लंगर सफर को निकली कश्ती ,
भंवर में आज खुद को पा रही है.

बहुत ही सुंदर ख्यालात के साथ कही गई यह शेयर मुझे काफी प्रभावित किया, पूरी ग़ज़ल खूबसूरती से कही गई है , एक बार पुनः दाद और बधाई स्वीकार करे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service