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अंगूठा चूसते-चूसते वो इतना "बड़ा" हो गया

मै ६ दिसंबर हूँ

मै ११ सितम्बर हूँ

२६ नवम्बर हूँ

आंसुओं का

महासागर हूँ मै !

--------------------------

गोल-गोल

बूँद भरी

पूर्ण हो

निकल पड़ी

-------------------

अंगूठा चूसते-चूसते

वो इतना "बड़ा" हो गया

की माँ बाप का कद

इतना "बड़ा" हो गया

--------------------------------

पूर्णिमा की रात

आई-गई नहीं

कि  अमावस

चल पड़ा

--------------------------

कल एक "लाल" चिराग ने

रोशन कर

माँ -बाप का नाम

सूरज को

दिया दिखा दिया

----------------------------

एक अजनवी से

पलकें झपकते ही

दिल की

हर बात हो गयी

-----------------------------

आँखों का तारा

जो टूटा तो

खुद ही नहीं

उसको भी ले डूबा

-------------------------

तनहाइयों ने काट-काट

अंतस के खोंडर में

घोंसला लगा लिया

---------------------------

चींटियों ने

बोझ ले

चलना सिखा दिया

------------------------

प्रेम की चासनी में

मिठास ही मिठास

डूबता चला गया

---------------------------

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर

कुल्लू यच पी

६.५.२०१२ -५.५६-६.२० पूर्वाह्न

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Comment by Abhinav Arun on May 7, 2012 at 6:32pm

चींटियों ने

बोझ ले

चलना सिखा दिया

वाह श्री सुरेन्द्र जी छोटी छोटी पंक्तियों में आपने बड़ी बात कह दी है सड़के जाऊं इस खुबसूरत रचना पर हार्दिक बधाई आपको !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 7, 2012 at 4:26pm

प्रिय मित्रों अपना स्नेह यों ही बनाये रखें और प्रोत्साहन देते रहें ताकि कुछ सिखा पढ़ा जाए कुछ नयी विधाएं --- आभार आप सब का -भ्रमर ५ 

Comment by MAHIMA SHREE on May 7, 2012 at 12:58pm
आदरणीय भ्रमर सर ,
नमस्कार .. बहुत अच्छी लगी आपकी क्षणिकाएं..
बधाई स्वीकार करें
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 7, 2012 at 11:58am

आदरणीय  भ्रमर  जी , सादर. 

बहुत सुन्दर, प्रभावशाली ढंग से सभी क्षेत्रों को समाहित करते हुए प्रस्तुति हेतु बधाई.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 7, 2012 at 9:15am

तनहाइयों ने काट-काट

अंतस के खोंडर में

घोंसला लगा लिया

---------------------------

चींटियों ने

बोझ ले

चलना सिखा दिया.....बहुत भाव पूर्ण क्षणिकाएं ये दो तो बहुत ही उत्तम लगी बधाई भ्रमर जी 

कृपया ध्यान दे...

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