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तोड़ो इन्हें की अब तो मुरझा रहे है फूल.

डाली पे रहते-रहते उकता रहे है फूल.

.

जाते समय तो घर से जुड़े में हंस रहे थे

लौटते कदम है,कुम्हला रहे है फूल.

.

ख़ुशबुओ का लेकर पैगाम साथ-साथ

दोनों दिलो क़े रिश्ते सुलझा रहे है फूल.

.

देने को सब खड़े है बस आखरी सलाम.

मिटटी बनी है देह सुस्ता रहे है फूल.

.

महका रहे थे महफ़िल रातो को देर तक.

घूरे की शान अब तो बढा रहे है फूल.

.

अविनाश बागडे.

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Comment by rajesh kumari on March 22, 2012 at 1:11pm

bahut sundar phoolon si mahakti hui ghazal.

Comment by MAHIMA SHREE on March 22, 2012 at 11:26am
तोड़ो इन्हें की अब तो मुरझा रहे है फूल.
डाली पे रहते-रहते उकता रहे है फूल.
जाते समय तो घर से जुड़े में हंस रहे थे
लौटते कदम है,कुम्हला रहे है फूल.

महका रहे थे महफ़िल रातो को देर तक.
घूरे की शान अब तो बढा रहे है फूल.

अविनाश जी , नमस्कार...
वाह...क्या बात है....हरेक पंक्तिया...लाजवाब है....बहुत-२ बधाई...

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