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बस!

बस! 
-----

कभी 

प्यादों सी
बेबसी को
जीता!
कभी
ढाई -घर 
उछलती 
अश्व -शक्ति के
जोश में
उफनता!
कभी 
ऊँट की
आडी -तिरछी
तिरपट-चालों का
नशा ढोता !
कभी
कोने में बैठे
हाथी की
कुंद होती
बुद्धिमत्ता का
अहसास झेलता!
कभी
मंत्री की
निरंकुशता के बीच
अकर्मण्य- राजा को
बात-बेबात
'शह' बोलकर
मात देने का
रंज!!!!
बस!
इन्ही
काले-सफ़ेद
घरों में
सिमट के
रह गया है
मेरे
जीवन का
शतरंज!!!!!!!
-----
अविनाश बागडे...

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Comment by AVINASH S BAGDE on August 6, 2012 at 7:00pm

AABHAR Rajesh kumari ji.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2012 at 5:33pm

jeevan bhi ek shatranj hai aur hum sab uske kirdaar ....bahut achcha bimb prastut kiya hai Avinash ji ...vaah

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 5:13pm

Seema ji..aapni meri rachana ko samay diya...man diya...aur sateek dad di....AABHAR.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 18, 2012 at 2:14pm

डॉ.सागर खादीवाला.....बहुत-बहुत धन्यवाद..

Comment by AVINASH S BAGDE on March 18, 2012 at 2:12pm

aabhar Arun Shri...aapki bahumooly pratikriya k liye.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 18, 2012 at 2:10pm
अविनाशजी, बधाई,अच्छी कविता है.
दरअसल ज़िन्दगी कि तरह शतरंज में भी सबसे निरीह और दूसरों की चालों पर निर्भर  प्राणी बादशाह होता है और सबसे सरल,दृढ़,अनुशासित और
बलिदान के लिए सहज उपलब्ध मुहरा प्यादा होता है.
आपकी कविता इस मर्म से वाकिफ है.
- डॉ.सागर खादीवाला
Comment by Arun Sri on March 17, 2012 at 7:58pm

अद्भुत रचना ! लगभग अनछुए से बिम्बो के माध्यम से आपने जो रच डाला वो कमाल है ! जीवन के सत्य को और नष्ट होते जीवन मूल्यों को उजागर करती रचना के लिए बधाई !

Comment by AVINASH S BAGDE on March 17, 2012 at 7:44pm
सौरभ जी,आपकी हौसला अफजाई मुझे प्रेरणा देती है
स्नेह बनाये रखें.
Comment by AVINASH S BAGDE on March 17, 2012 at 7:44pm

शतरंज को जीवन से जोड़ने की बाजी .....

आग तेरे दिल में हो या मेरे दिल में  आग जलनी चाहिए..................सूरत बदलनी चाहिए.
विन्देश्वरी जी जिस अंदाज़ में आपने प्रतिक्रिया दी...मन को छू लिया.



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2012 at 9:32pm

बिसात पर के मोहरों की भाव-दशा को जीती आज की ज़िन्दग़ी को सक्षम स्वर दिया है आपने, भाई अविनाशजी.  इस परख पर सादर बधाई.

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