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लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा

लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा


अजनबी शहर में सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर घर मेरा चर्चा होगा

गम नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा

दामने जीस्त फिर भीगा हुआ सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा

कब्र में आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों में मरूँगा तो तमाशा होगा
मेरे काव्य संग्रह ---कनक--से -

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Comment by jagdishtapish on August 10, 2010 at 10:39pm
माननीय आशा जी
हमें कतई उम्मीद न थी की आप उन पंक्तियों को पसंद करेंगी जो
हमने अपने जीवन में सच्चाई के धरातल पर खड़े रहकर
ना जाने किस भावना के वशीभूत होकर लिख दी
यकीं हो गया हमें बहुत पैनी नज़र है आपकी
इतनी गहरे तक पहुँचने के लिए हम उस ईश्वर
को धन्यवाद् देते हैं जिसने आपको कलमकार के
अंतर मन में झांक कर देखने की शक्ति दी हमारा
जीवन भर का अनुभव कहता है बहुत कम लोग
होते हैं ऐसे जिन्हें ईश्वर ऐसी प्रतिभा देता है
सच को सच कहने के लिए ह्रदय से आभारी हैं हम आपके ---
सादर
Comment by asha pandey ojha on August 10, 2010 at 7:03pm
waah tapish ji dil ko chho liya दामने जीस्त फिर भीगा हुआ सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा

कब्र में आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों में मरूँगा तो तमाशा होगा kamal kee panktiyan hain ye to badhai
Comment by jagdishtapish on August 10, 2010 at 3:01pm
manniya preetam ji -manoj ji --satis ji --aadarniya salil ji ganesh ji aap sabhi ne hamare vicharon ko saraha sadaiv isi tarah isneh banaye rakhen aabhar sweekaren
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on August 10, 2010 at 2:11pm
अजनबी शहर में सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर घर मेरा चर्चा होगा

वाह भैया वाह....बहुत ही बढ़िया और सुंदर ग़ज़ल है.....जारी रखे...आशा नही पूरा यकीन है की आयेज भी निरंतर आपकी रचना पढ़ने को मिलती रहेगी....
Comment by satish mapatpuri on August 9, 2010 at 4:12pm
लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा
गम नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा
बड़े ही खुबसूरत ख्याल है तपिश जी, आनंद आ गया.
Comment by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 8:36pm
वाह... वाह... दिल तक पहुँचती हुई रचना.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2010 at 8:58pm
वाह बड़े भाई वाह क्या गज़ब का मतला निकाला है, जबरदस्त ,
लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा,
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा,
बहुत सुंदर ग़ज़ल कहा है आपने बहुत खूब, बधाई स्वीकार करे भाई साहब ,

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