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गतांक से आगे ...
शौक (झलकी) भाग-२
.
सोनू प्रवेश कर विनोदजी को नमस्ते कर अपने कमरे में प्रवेश कर जाता है.
रंजना-          आप तो इंजिनियर बन गए हैं, वो भी एक बड़ी कम्पनी में.
विनोदजी-     यह सब आप सभी के आशीर्वाद का फल है भाभी जी. वही तो अभी बात हो रही थी कि रामदीन भी तो आई.आई.टी  में                     सेलेक्सन पा चुका था .
रंजना -         लीजिये. चाय पीजिए नहीं तो ठंडी हो जाएगी.... नमकीन भी लीजिये.
विनोदजी-     रामदीन भाई, आप भी तो....
रामदीन-       ठीक है यार, पहले तू भी तो पी ले. मैं भी पी रहा हूँ...
                    तुम्हें याद है यार वो हमलोगों का साथ-साथ चाय पीने जाना चौराहे पर.....
विनोदजी-     हाँ भाई हमें याद है, भला कैसे भूलेंगे ....वो बचपन और पढाई के दिन ....
                    लेकिन यार तू कुछ कह रहा था, जब भाभी जी चाय लेकर आई थीं...
रामदीन-      हाँ यार, यही कि पिताजी के पास उतने पैसे नहीं थे एडमिशन के लिए. अब यही...
                   खेती कर रहा  हूँ और यहीं गाँव में एक स्कूल टीचर भी हूँ....
                   पर, अब मेरा सपना है कि मेरा बेटा हमरी जगह इंजिनियर बने.
विनोदजी-   अरे भाई, तुम्हारा बेटा आया तो था, पर कहाँ चला गया ? कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.
रामदीन -    वो अभी कक्षा १२ में है.. और यहीं पास के स्कूल में पढाई करता है. उसे मैं तुम्हारे बारे में बताता हूँ और कहता हूँ कि उसे भी                    कक्षा १२ के बाद आई. आई. टी में एडमिशन लेना है पर वो कहता है कि नहीं पापा ..हमारे बस का ये नहीं है. अब तू आया है,                    जरा उसको समझाना. शायद तेरी बात मान जाय.
विनोदजी -   कहाँ है तेरा बेटा ?
रामदीन-     सोनू बेटे जरा सुन तो अंकल बुला रहे है.
(सोनू कमरे से बहार आता है)
रामदीन-     आ गया सोनू. अभी तुम्हारी ही बात चल रही थी बेटा.
                  देख ये कौन आये हैं. पाँव छू इनके.
(सोनू विनोदजी के पाँव छूता है)
विनोदजी-    ख़ुश रहो बेटा, पर कहाँ थे आप ?
सोनू-          (सहमता हुआ) वो-वो कहीं नहीं. 
रामदीन-      नदी के किनारे घंटों बैठकर गुनगुनाता रहा होगा.

क्रमशः

 

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Comment by Rash Bihari Ravi on August 12, 2011 at 1:14pm

bahut badhi

 

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