ग़ज़ल
212 212 212
तू है इक आइना ओबीओ
सबने मिल कर कहा ओबीओ
जो भी तुझ से मिला ओबीओ
तेरा आशिक़ हुआ ओबीओ
तुझसे बहतर अदब का नहीं
कोई भी रहनुमा ओबीओ
जन्म दिन हो मुबारक तुझे
मेरे प्यारे सखा ओबीओ
यार बरसों से रूठे हैं जो
उनको वापस बुला ओबीओ
हम तेरा नाम ऊँचा करें
है यही कामना ओबीओ
जो नहीं सीखना चाहते
उनसे पीछा छुड़ा ओबीओ
और जो सीखते हैं उन्हें
अपने सर पर बिठा ओबीओ
जो मेरे दिल ने मुझ से कहा
मैंने वो कह दिया ओबीओ
हम तेरे साथ आगे बढ़ें
रास्ता वो दिखा ओबीओ
तेरा सेवक हूँ मुद्दत से मैँ
और रहूँगा सदा ओबीओ
तू सदा यूँ ही फूले फले
है 'समर की दुआ ओबीओ
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
मुहतरमा प्राची सिंह जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
जनाब अमीरुद्दीन साहिब आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, आपको भी ओबीओ की बारहवीं सालगिरह की हार्दिक बधाई I
दो अशआर आपको ख़ास तौर पर पसंद आये इसके लिये आपको धन्यवाद कहता हूँ I
इन बारह वर्षों में ओबीओ ने क्या कुछ नहीं देखा , कई मित्र हमें छोड़ कर इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुखस्त्च्ले गये ,उन्हें ओबीओ कभी भुला नहीं पाएगा I
//लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहूँगा, इस मंच से कोई रूठा नहीं है. इस मंच से कोई रूठ भी नहीं सकता है. अलबत्ता, रहिवासी ही इस घर से बड़े हो गये हैं. इतने कि, या तो निजी व्यस्तता आड़े आने लगी है, जो कि एक चुभती हुई सच्चाई है. या फिर, घर का आचार-व्यवहार ही कइयों को निरंकुश प्रतीत होने लगा है. यह नितांत व्यक्तिगत सोच का पहलू अवश्य हो, परंतु, यह भी एक हकीकत है//
आपकी बात से सहमत हूँ, लेकिन भक्त भगवान से रूठ जाता है, बंदा ख़ुदा से रूठ जाता है , इसी तरह कुछ ऐसेईसे ही सदस्य हैं जिन्हें मैं ज़ाती तौर पर जानता हूँ और ऊन्हें मनाने के जतन भी कई बार कर चूका हूँ इसलिये ये शे`र बे साख़्ता हो गया I
ग़ज़ल आपको पसंद आ गई लिखना सार्थक हुआ ,इसके लिये आपका आभारी हूँ I
दुआ करता हूँ कि ओबीओ इसी तरह ख़ूब फूले फले I
मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका धन्यवाद I
प्रिय अनुज मयंक द्विवेदी आदाब , ग़ज़ल की सराहना के लिये बहुत धन्यवाद I
जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका धन्यवाद I
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