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वो मेरा करीबी था, मैं मगर फरेबी था

इश्क़ वो वफा ओं वाली चाह बन के रह गयी

जो भी सितम हुए, सब मैंने ही सनम किए

टोकरी दुआओं वाली, आह बनके रह गयी

था मेरा गुरूर उसको, मेरा था शुरूर उसको

साथ जब मैंने छोड़ा, आंखे नम रह गयी

सपनों का था एक क़िला, मिलने का वो सिलसिला

तोड़ा उसके दिल को मैंने, पल मे सारी ढह गयी

वादे उसकी सच्ची थी, मेरी डोर कच्ची थी

फर्जी मेरी वायदे मे फंस के जैसे रह गयी

बेरहम सा प्यार मेरा, मोम जैसा दिल था उसका

मेरी खुदगर्जि के आगे, अफसोस करके रह गयी

था बड़ा सुकून उसको, मेरा था यकिन उसको

चालबाज़ियों को मेरी, हंस के सारी सह गयी

उसकी खातिर दो जहाँ था, मैं ही उसका आसमा था

देख कर ठगी को मेरे, बस सिसक के रह गयी

इश्क़ उसकी साधना थी, मेरे मन मे वासना थी

देख के ये रूप मेरा, वो ठिठक के रह गयी

वो थी उसकी आरज़ू थी, बस मेरी ही जुस्तजू थी

राह ये गलत थी लेकिन, साथ मेरे चल गयी

उसके दिल की ये लगी थी, मेरी तो बस दिल्लगी थी

दिल्लगी मे जाने क्यों वो, दिल को लगा के रह गयी

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

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Comment

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Comment by AMAN SINHA on April 7, 2022 at 1:55pm

आदरणीय Dr.Prachi Singh जी, 

तारिफ़ करने के लिये अथाह धन्यवाद। मुझे ना तो ग़ज़ल की समझ है और नाहीं शेर, दोहा या अन्य किसी भी प्रकार के लेखन कला की। 

सत्य तो यह है की जब कलम हाथ में होती है उस क्षण जो भी शब्द मन में उभरते है बस उसीसे कागज़ काला करता रहता हूँ। आपको पसंद आयी उसके लिये शुक्रिया। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 6, 2022 at 1:11pm

पारस्परिक प्रेम में स्वयं की विवेचना अपनी अन्तर्दशा के अस्वीकार्य व्यव्हार के प्रति इस प्रकार की स्वीकारोक्ति कम ही मिलती है 

विषय वस्तु  की सत्यता नें प्रभावित किया ... इस अभिव्यक्ति को ग़ज़ल में कहने का प्रयास कीजिये बहुत सुन्दर बन पड़ेगी 

स्वस्ति कामनाएं

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