For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसी थी यह अलविदा

"अन्तिम विदा" की शाम के बाद

कुछ पलों के लिए ही सही

एक बार पुन: तुम्हारा लोट आना

आँचभरी वेदना को छुपाती मेरी आँखों में देखना

मानवीय उलझनें, प्यार की तलाश

और अब अश्चर्य और उत्साह का सुप्रसार

मुझको एक बार फिर अपनी बाहों में लपेट

कस लेना पास, और पास

बिना एक भी शब्द कहे सुननी हो मानो

मेरे हृदय की धड़कन, और

बसता उसमें तुम्हारे प्रति

चिरंजीव प्यार, और वेदना अपार 

"सही" "न सही" का सहसा आभास

वेदना और उत्साह और

असहनीय आनन्द का यह अद्भुत संगम

तुमको उसी तरह पास रखने की 

जीवन भर जी में भर लेने की

व्याकुलतर अकुलाहट

मेरे मन की एक गुहा को विभासित करता

तुम्हारा उजियाला निर्मल प्यार असीम

और एक और गुहा के अन्धेरे में छिपी

कुण्डली मार सर्प-सी लेट रही वेदना

और एक बार पुन::मुझको कसकर पास

तुम्हारा चुपचाप अश्रुपूर्ण लोट जाना

किस-किस दोराहे, किस चौराहे से पूछूँ आज

कहाँ हो तुम, कैसी हो तुम, तुम्हारा पता

पल भर में मानो कितना हुआ, यह था क्या हुआ

कुछ मेरा मन भटका, कुछ तुम्हारे भीगे दर्द ने करवट बदली

और अब है अंतिम निद्रा के पल से पहले तुम्हारी आँखो से बस 

एक बार पुन: गुज़र जाने की मेरी अविरल चाह की व्यग्रता ...

आलोचनाशील

छटपटाता मन अब हँस रहा, अब रो रहा, सोच रहा

कैसा था हमारा पुनर्मिलन, कैसी थी यह अलविदा ?

                                 ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 381

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 27, 2022 at 11:42am

प्रिय समर कबीर जी और लक्ष्मण धामी जी। रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2022 at 8:22pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on December 30, 2021 at 3:51pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह अच्छी रचना हुई है , इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service