.
ग़म-ए-फ़िराक़ से गर हम दहक रहे होते
तो आफ़ताब से बढ़कर चमक रहे होते.
.
बदन की सिगड़ी के शोलों पे पक रहे होते
वो मेरे साथ अगर सुब्ह तक रहे होते.
.
तेरी शुआओं को पीकर बहक रहे होते
मेरी हवस को मेरे होंट बक रहे होते.
.
सुकून मिलता हमें काश जो ये हो जाता
कि हम भी यार के दिल की कसक रहे होते.
.
तेरी नज़र से उतरना भी एक नेमत है
वगर्न: आँखों में सब की खटक रहे होते.
.
लबों का रस हमें मिलता तो शह’द होते हम
अगर जो आँखों में होते नमक रहे होते.
.
अगर शजर न भी होते तो हम से ख़ुशकिस्मत
किसी की ज़ुल्फ़ किसी की पलक रहे होते.
.
सराय छोड़ी तो घर तक पहुँच सके हैं हम
बदन में रहते तो अब तक भटक रहे होते.
.
अगर ये ‘नूर’ मियाँ आदमी न होते तो
वो मंज़िलों से मिलाती सड़क रहे होते.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
//ऐ 'ज़ौक़' गर जो चैन न आया क़ज़ा के बाद//
सर-ए-तस्लीम ख़म।
राहत के वास्ते है मुझे आरज़ू-ए-मर्ग
ऐ 'ज़ौक़' गर जो चैन न आया क़ज़ा के बाद
उस्ताद शैख़ इब्राहिम 'ज़ौक़'
//बिल्कुल,मेरी समर सर से बहस हुई और उसके बाद मैंने मिसरा बदला, लेकिन मैं अब भी इस बात पर काएम हूँ कि मियाद ही आम बोलचाल का प्रचलित शब्द है।वैसे भी मैं अड़ियल नहीं हूं//
मानता हूँ, आप अड़ियल नहीं हैं, मगर शायद आप भूल रहे हैं कि "एक नुस्ख़ा जो घटा देता है हर दुःख की मियाद" मिसरा अभी आप ने बदला नहीं है।
इंदौर वाले बाबा का शे'र बहुत ख़ूब है।
'मैं नूर बन के ज़माने में फैल जाऊंगा
तुम आफ़ताब में कीड़े निकलते रहना' 'निकालते' (टंकण त्रुटि)
'लबों का रस हमें मिलता तो शह’द होते हम
अगर जो आँखों में होते नमक रहे होते.' मुझे ऐसे भी शे'र अच्छा लगा है। सादर।
//साँप सर मार अगर जो जावे मर
न करे ज़ुल्फ़ के तिरी सर बर
आबरू शाह मुबारक... शायर उर्दू में मेरे के समकालीन हैं//
जनाब निलेश नूर साहिब... मेरे भी समकालीन शाइर हैं आप, और ओ बी ओ पर आपकी हस्ब-ए-ज़ैल नसीहतें और इस्लाहात के मद्देनज़र मैंने ऐसा कहने की जसारत की थी, बाक़ी आपको जो उचित लगे -
"मतला देखने से भाषाई त्रुटी ध्यान में आती है.वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का ....इज़हार और जताना एक ही वंश के शब्द हैं, लगभग पर्यायवाची अत: इस पर गौर…"
"मेरी पिछली ग़ज़ल में मैंने एक शब्द लिया था मियाद ..जो बहुत ही आम फ़हम व प्रचलित शब्द है लेकिन समर सर ने बताया कि उसे मीआद पढ़ा जाता है..
इस पर उन से व्हाट्स एप्प पर काफी बहस के बाद मैंने उस मिसरे को बदल दिया और मुझे लगता है कि मिसरा पहले से बेहतर हो गया.
इस मंच का और सुधि जनों की तेज़ नज़रों का लाभ जितना लूटा जा सके... "
आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब
साँप सर मार अगर जो जावे मर
न करे ज़ुल्फ़ के तिरी सर बर
आबरू शाह मुबारक... शायर उर्दू में मेरे के समकालीन हैं
.
सादर
लबों का रस हमें मिलता तो शह’द होते हम
अगर जो आँखों में होते नमक रहे होते.
जनाब निलेश जी 'अगर' के साथ 'जो' उचित नहीं लगता, दोनों शब्द लगभग पर्यायवाची हैं,
'मगर जो आँखों में होते नमक रहे होते.' देखिएगा। सादर।
शुक्रिया आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब
जनाब निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।
"तेरी नज़र से उतरना भी एक नेमत है
वगर्न: आँखों में सब की खटक रहे होते" बेहद उम्द: शेर। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online