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जिजीवषा जो इन्सा की

वह नहीं  कभी भी हारेगी

जन-जन तक पहुँचाने सुविधा

अपने श्रम बल को वारेगी

उत्पाती कोरोना की यह

सघन श्रृंखला टूटेगी

जकड़न से पाश मुक्त होकर

मानवी हताशा छूटेगी

गहन बुद्धि अन्वेषण से

वैज्ञानिक युक्ति निकालेगा

निर्मित कर अचूक औषधियाँ

 इसको  तो जड़ से मारेगा

भय  जाएगा मन से समूल

कीटाणु सर्वदा हारेगा

मास्क, शुद्धता, शारीरिक 

दूरी का भूत उतारेगा 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Usha Awasthi on September 12, 2021 at 4:48pm

आ0 समर कबीर साहेब , हार्दिक आभार आपका

सही सलाह हेतु बहुत धन्यवाद। 

Comment by Samar kabeer on September 12, 2021 at 2:43pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना है, बधाई स्वीकार करें ।

'जिजीवषा जो इन्सा की'

इन्सा--'इंसाँ'

Comment by Usha Awasthi on September 8, 2021 at 10:22pm

हार्दिक धन्यवाद आशीष यादव जी, सादर

Comment by आशीष यादव on September 8, 2021 at 10:09pm

बहुत अच्छी आशावादी कविता।

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