नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ
अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।
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रात छत पे जब निकल आता है तू
इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ। **
ये जो तन से मेरे आती है महक़..
मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।
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ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..
मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।
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सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप
मैं सदा को तेरी जादू कहता हूँ।
**
जान कहता था जो तू ,सो अब भी मैं
जान खुदको तुझको जानू कहता हूँ।
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मौलिक व अप्रकाशित
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Comment
बहुत ही भावपूर्ण ग़ज़ल कही है आदरणीय..बधाई
// क्या सभी मिसरों में रवानी नहीं है//
बिल्कुल !
मिसाल के तौर पर:-
'नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ
अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं'
इस मतले की तक़ती'अ देखें:-
नेह के--22
आँसू--22
को सर--22
जू कह-22
ता हूँ--22---यानी 5 फ़ेलुन
अपने--22
पन से--22
तुझको--22
मैं तू--22
कहता--22
हूँ--2---5 फ़ेलुन 1 फ़ा
एक बात हमेशा ध्यान में रखें कि मात्रा पतन अरूज़ का कोई नियम नहीं है, सिर्फ़ एक छूट है, जितना कम मात्रा पतन होगा उतना ही शैर सुंदर होगा ।
सादर अभिवादन समर सर क्या सभी मिसरों में रवानी नहीं है?
आ. भैया लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी हौसलाफजाई के लिए बहुत शुक्रिया हार्दिक आभार।
जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिम बहुत ज़ियादा मात्रा पतन से मिसरे रवानी में नहीं हैं,बधाई स्वीकार करें ।
'सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप'
इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-
'जब थकन पी जाती है मेरी ये धूप'
आदरणीय समर सर ग़ज़ल पर आपका बेसब्री से इंतजार था। पोस्ट में अरकान लिखना भूल गया।
2122 2122 212
जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, इस ग़ज़ल पर कुछ लिखने से पहले जानना चाहता हूँ कि आपने अरकान क्या लिये हैं?
आ. भाई क्रिस जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
हार्दिक आभार भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी जी ग़ज़ल पर आपकी मोहब्बतों के लिए।
भाई जी वाह अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई।
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