२२/२२/२२/२२
दुनिया जिससे डरती होगी
प्यार न उससे करती होगी।१।
*
जैसा इसको नोच रहे हम
कैसी कल ये धरती होगी।२।
*
चाँद नगर क्या जाना यारो
भूमि वहाँ भी परती होगी।३।
*
जितना विष हम पिला रहे हैं
नित्य नदी एक मरती होगी।४।
*
चाँद को जब बदसूरत करने
दुनिया रोज उतरती होगी।५।
*
धरती के मन की हर पीड़ा
पलपल और उभरती होगी।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
"आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, पर्यावरण पर चिंता के भाव से उम्दा ग़ज़ल कही है आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
आ. भाई जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार । आपने उचित बदलाव सुझाए हैं । हार्दिक धन्यवाद।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'नित्य नदी एक मरती होगी'
इस मिसरे में 'एक' को "इक" कर लें ।
'चाँद को जब बदसूरत करने'
इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कर लें:-
'चंदा को बदसूरत करने'
आवश्यक सूचना:-
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