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बरस हुए हैं कई न तुमने  की गुफ़्तगू है न हाल पूछा(९४ )

121 22  121 22  121 22  121 22 

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बरस हुए हैं कई न तुमने  की गुफ़्तगू है न हाल पूछा

कहाँ हो तुम ये  पता नहीं क्यों न हमने कोई सवाल पूछा

**

सँभाल कर सब रखे जो ख़त हैं उन्हीं को पढ़कर करें गुज़ारा

किताब  के सूखे फूल ने भी है कैसा हुस्न-ओ-जमाल पूछा

**

बिना तुम्हारे फ़ज़ा में ख़ुश्बू   न संदली अब रही है जानाँ

बहार ने तितलियों से इक दिन तुम्हारा भी हाल चाल पूछा

**

तुम्हारा  जायज़ है  रूठना पर तवील इतना कभी नहीं  था

हमारे  दिल ने सनम  हमीं से - "खड़ा किया क्यों वबाल" पूछा

**

सवाल था तिफ़्ल के ये  मन में जवाब देना बड़ा है मुश्किल

बनाई दुनिया हसीं ख़ुदा ने "किया है कैसे कमाल" पूछा

**

ख़मोशियों का ज़माने भर में  जहाँ भी देखें लगा है पहरा

वबा ने आकर हर इक वतन में "बशर तेरी क्या मज़ाल" पूछा

**

सियासतों ने ग़रीब को ही बना निशाना सदा है लूटा

मगर किसी ने "ग़रीब क्यों है इन्हीं के हाथों हलाल" पूछा ?

**

हज़ारों दाग़ी करे हकूमत अवाम पर कोई कुछ न बोले

मगर रियाया ने मीर को भी किया है क्या गोलमाल पूछा ?    

**

'तुरंत' कहता ग़ज़ल ये मुमकिन हुआ है मेहनत से उसकी यारो

मगर किसी ने कभी अभी तक कहाँ से आते ख़याल पूछा ?

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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