मेरा दिल वो मेरी धड़कन,
उसपे कुरबां मेरा जीवन !
मेरी दौलत मेरी चाहत
ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !
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(२)
अंग अंग में मस्ती भर दे
आलिम को दीवाना कर दे
महका देता है वो तन मन
ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन !
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(३)
मिले न गर, दुनिया रुक जाए
मिले तो जियरा खूब जलाए !
हो कैसा भी - है अनमोल,
ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !
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(४)
कर गुज़रे जो दिल में ठाने,
नर नारी उसके दीवाने !
वो इतिहास का सुंदर पन्ना
ऐ सखी साजन ? न सखी अन्ना !
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(५)
हरिक बेचैनी का सबब है,
उसे किसी की चिंता कब है ?
दुनिया भर के दर्द है देता
ऐ सखी साजन ? न सखी नेता !
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Comment
सादर आभार आदरणीय तिलक राज कपूर जी !
विलुप्त होती जा रही साहित्यिक विधाओं को पुर्नजीवन देने का आपका यह प्रयास सम्माननीय है। मुकरियों में पेट्रोल्, अन्ना और नेता जैसे नये संदर्भ पहली बार देखने को मिले हैं।
ऐतिहासिक संदर्भों में यह बुद्धिमय संवाद के उदाहरण के रूप में ही दी जाती है। आचार्य सलिल जी ने इसकी सही व्याख्या की है।
आपसे आगे टप्पे, माहिये जेसी विधाओं पर भी अपेक्षा रहेंगी।
इस उपयोगी एवं आवश्यक जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रभाकर जी | जल्द ही अपनी कह मुकरी पोस्ट करूंगा और आप का मार्गदर्शन चाहूँगा ...इस शानदार विधा से परिचय कराने के लिए एक बार फिर से धन्यवाद ।
भाई विक्रम श्रीवास्तव जी, उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभारी हूँ ! दरअसल कहमुकरी कहना कोई ज्यादा कठिन कम नहीं है, यदि आप भी इस विधा पर कलाम चलाएँ तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी ! कहमुकरी विधा शिल्प का संक्षिप्त जानकारी परिचय आपकी जानकारी के लिए दे रहा हूँ :
''मुकरी=वह कविता जिसमें पहले कही हुई बात का अंत में खंडन सा किया जाए. पहेली जैसी कविता.''-(वृहद् हिंदी शब्द कोष, पृष्ठ ९००)
इस विधा को "मुकरी","कह-मुकरी", "कह-मुकरनी" भी कहा जाता है ! यह दरअसल दो सखियों के बीच का वार्तालाप है ! बकौल आदरणीय तिलक राज कपूर जी के यह एक ऐसी "रिडल" है जिसका उत्तर इस में ही छुपा हुआ होता !
आदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी के मतानुसार
:
"मुकरना एक क्रिया है जिसका अर्थ कही हुई बात से इंकार करना, नट जाना, फिर जाना, बदल जाना है. अपने सही कहा है की यह दो सखियों की गुफ्तगू (बात-चीत) है. बात करते-करते एक सखी को प्रिय की याद आ जाती है... वह बेखयाली में प्रिय के बारे में कुछ कह जाती है... दूसरी सखी पूछती है तो इनकार कर कहती है की नहीं मैं तो किसी अन्य के बारे में बात कर रही थी !" इस विधा में रचना के लिए वाग्वैदग्ध्य, प्रगल्भता तथा वाक्चातुर्य जरूरी हैं !
उत्साहवर्धन हेतु ह्रदय से आभार आदरणीया शन्नो जी !
डॉ नमन दत्त जी, आपने इस लुप्तप्राय: विधा पर मेरा प्रयास पसंद किया, आपका अत्यंत आभार !
हज़रते अमीर ख़ुसरो की रवायत का सिलसिला आपने बख़ूबी निभाया प्रभाकर जी...और वो भी आज के इस जदीद नज़रिए के झरोखे से...मुबारक़बाद
वाह ....सच कहूँ तो आज ही कह मुकरियों से परिचय हुआ है....और आपकी कह मुकरियाँ पढ़कर इतना आनंद आ गया है की खुद भी कह के मुकरने का दिल कर रहा है....पाँच के पांचों कह मुकरियाँ बेजोड़ ...:)
वाह ! बहुत ही सुंदर कहमुकरियाँ..पढ़कर मन आनंदित हो गया, योगराज जी.
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