For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 - 2121 - 1221 - 212 

है कौन  ऐसा  जिसको  यहाँ आज  ग़म नहीं 

हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं 

दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक

साँसें  हुईं   मुहाल  कि  मसला  शिकम  नहीं 

ग़म  को  वसीह  करते  ये अटके  हुए  बदन

नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं 

आई  वबा ये कैसी  कि मातम  है  हर तरफ़ 

ग़मगीन  चहरे  लाशों पे  लाशें भी कम नहीं 

मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज ये

मिल जाऊँ बन के ज़र्रा  इसी में तो ग़म नहीं 

ग़द्दारों   ने   समाधि   से  चद्दर  खसोट   ली

क्या होगा इससे बढ़के भी कोई अलम? नहीं  

ख़ुद अपनी मय्यतों को जो काँधा न दे सके 

मारे  नसीब  के  हैं  वो  मुर्दों  से  कम  नहीं 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 977

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Chetan Prakash on July 3, 2021 at 6:23pm

देर आयद  दुरुस्त आयद!

Comment by Chetan Prakash on July 3, 2021 at 6:22pm

देर आये दुरुस्त आयद !

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 3, 2021 at 3:08pm

बुद्धम शरणम गच्छामि। 

Comment by Chetan Prakash on July 3, 2021 at 1:57pm

 अमीर साहब, मैं अभी भी अपनी पहली टीप पर ही दृढ़ हूँ, और व्यक्तिगत रूप से मुझे आप से कोई परेशानी नहीं है, और न कभी होगी ! आपका हर प्रश्न सर माथे, लेकिन जनाब आप वरिष्ठ नागरिक हैं, थोडा संजीदगी आपसे अपेक्षित है !

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 3, 2021 at 1:16pm

चेतन प्रकाश जी लगता है कि शे'र में किये गये बदलाव से आप पहले से भी ज़्यादा आहत हैं। अब आपको तुलनात्मक रूप से मूल शे'र ही ज़्यादा उचित लग रहा है तभी तो शे'र को बदलने पर आपकी टीस मुखर हो गयी है, और असंयमित व्यहवार का परिचय दे रहे हैं। बहरहाल आपको दी गई चेतावनी भविष्य के संदर्भ में है, इसे गीदड़ भभकी मात्र समझने की भूल न करें। 

Comment by Chetan Prakash on July 3, 2021 at 12:30pm

 आदाब, अमीर साहब! आप अपना  मूल शैर, "सरकार ने समाधि  से चद्दर खसोट ली /  क्या  होगा इससे बढ़ के भी कोई अलम नहीं " !

पहले ही अफवाह फैलाने  / झूठ प्रसारित करने वाला  है, इसे सही मानकर स्वविवेक से बदल चुके है ! फिर  मुझे किस बात  की 'गीदड़ भभकी' दे  रहे हैं, जनाब  ?

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 3, 2021 at 12:00pm

जनाब चेतन प्रकाश जी आप को चेताया जाता है कि बेवज्ह झूठ और अफ़वाह फैलाने का जो आरोप आप मुझ पर लगा रहे हैं उसे स्पष्ट बताएं कि वो क्या हैं और उन आरोपों के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करें अन्यथा की स्थिति में भविष्य में आपके विरुद्ध समुचित और आवश्यक विधिक कार्यवाही करने के लिए मैं स्वतंत्र रहूँगा।  सादर।

Comment by Chetan Prakash on July 3, 2021 at 9:11am

आदाब, अमीर  साहब,  मुझे  शब्दों  पर नहीं, आपके  कहे झूठ पर आपत्ति  रही ! शब्द से किसे आपत्ति हो सकती है, जनाब,  भारतीय हों अथवा ग्रीक काव्यशास्त्र के विद्वान और अंग्रेजी काव्यशास्त्र का कोई  भी मनीषी, कहूँ तो अमेरिकी काव्यशास्त्र के मूर्धन्य विद्वान शब्द  की शक्ति के सम्मुख नतमस्तक हैं !

आदरणीय,  भारतीय  वांग्मय और काव्यशास्त्र में तो शब्द  को ब्रह्म ही कहा गया है ! शब्द की साधना से कोई  कवि / शाइर जाना  जाता है ! फिर शब्द से किसको द्रोह हो सकता है! कहना न होगा, बुढ़ापे का  असर  आपकी मेधा  पर स्पष्ट  दिखाई  दे रहा है ! यही कारण है कि आपका स्वयं के  विवेक पर भरोसा

भरोसा  नहीं  रह गया  है !

और, एक बार फिर आप मूल विमर्श से हटकर असंगत राजनीतिक टिप्पणी  कर रहे हैं , इति  !

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 11:09pm

जनाब चेतन प्रकाश जी, लगता है कि उक्त वर्णित शे'र में आपको 'सरकार' शब्द पर आपत्ति है, क्योंकि यह तो सभी जानते हैं कि कोविड 19 महामारी के दौरान लगभग चार लाख लोगों ने केवल भारत में अपनी जानें गँवा दी हैं, जब ये महामारी अपने चरम पर थी तो न केवल इस वायरस ने नंगा नाच दिखाया बल्कि सरकारी अव्यवस्थाओं के चलते पूरे विश्व में भारत की छवि को धूल धूसरित कर दिया। जिन शवों को लकड़ियों के अभाव में अन्तिम संस्कार के बग़ैर जानवरों की लाशों की तरह नदियों में फेंक दिया गया,जहाँ उन्हें चील कौवे और कुत्ते नोचते रहे जिन अधजली लाशों को कुत्ते खाते रहे उनके बारे में आप क्या कहेंगे, बिना आॅक्सीजन और दवाओं के तड़प तड़प कर दम तोड़ते हमारे अपने ही थे न, या ये सब कोरी अफ़वाहें मात्र हैं, या फिर आपके अनुसार ये सब मीडिया के व्यवसायिक चैनलों का षड्यंत्र है ? लगता है कि आपके पड़ौसी, दोस्त, सम्बन्धी, परिवार में से किसी को भी इस दंश को झेलना नहीं पड़ा है जिस दंश को लगभग पूरा देश दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से झेल रहा है। हम इन्सानों को हमारी अंतरात्मा इतना संवेदन शून्य कैसे होने दे सकती है कि हम अपनों के साथ हुए इस क्रूरतम व्यवहार की शिकायत भी न करें, यदि ऐसा ही है तो हमें सामाजिक प्राणी कहना सही नहीं है।

आपको 'सरकार' शब्द पर आपत्ति है तो ठीक है मैं 'ग़द्दार' कहूँगा! क्यों ठीक है न, आपकी सरकार बच गई। 

Comment by Chetan Prakash on July 2, 2021 at 9:40pm

आजी तमाम, दोस्त, हम लोग  एक  उच्च  कोटि  के साहित्यिक  / काव्यात्मक  समूह  ओ बो ओ के सदस्य हैं और  परस्पर  पारिवारिक माहौल  में  स्नेह पूर्ण  व्यवहार करते  रहें हैं! सो,  अगर कोई  आपत्ति ब॔धु  विशेष रूप से  मेरे कथन अथवा

अथवा  व्यवहार को लेकर हो तो बेझिझक आप प्रश्न  करें, मैं जवाब  देने को प्रतिबद्ध  हूँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
4 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
4 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service