For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुकद्दर का घोड़ा 122, 122 22 रदीफ के साथ (ग़ज़ल,छोटी बहर पर एक प्रयास )

122, 122 22 (ग़ज़ल)

जमाया हथौड़ा रब्बा 

कहीं का न छोड़ा रब्बा 

बना काँच का था नाज़ुक 

मुकद्दर का घोड़ा रब्बा 

हवा में उड़ाया उसने 

जतन से था जोड़ा रब्बा

तबाही का आलम उसने 

मेरी और मोड़ा रब्बा  

बेरह्मी से दिल को यूँ 

कई बार तोड़ा रब्बा  

रगों से लहू को मेरे

बराबर निचोड़ा रब्बा

चली थी  कहाँ मैं देखो   

कहाँ ला के छोड़ा रब्बा

मुकद्दर पे ताना कैसे

कसे मन निगोड़ा रब्बा 

लगे ए  'राज' तेरा ये 

कहानी का रोड़ा रब्बा 

******************** 

Views: 1026

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2013 at 11:24pm

एक बहुत गंभीर प्रयास. कोशिश रंग लायेगी .. . इस ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई,आदरणीया.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2013 at 10:36pm

जनाब सलीम राजा जी से मैं सहमत हूँ , छोटी बहर में ग़ज़ल कहने में अदायगी पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, प्रयास अच्छा है , कई शेर अच्छे बन पड़ें है, बधाई तो बनता है :-)

Comment by SALIM RAZA REWA on February 7, 2013 at 10:01pm

CHOTI BAHAR ME ACHHI GAZAL ////PAR HAR SHER PUREE BAT NAHI KAH RAHA //GAZAL KA HAR SHER APNE AAP MEN MUQAMMAL HONA CHAHIE //BANKI KHAYAL ACHHA HAI //

Comment by MAHIMA SHREE on February 7, 2013 at 9:53pm

जमाया हथौड़ा
कहीं का न छोड़ा

बना काँच का था
मुकद्दर का घोड़ा

हवा में उड़ाया
जतन से था जोड़ा

 

आदरणीया राजेश दी ..अच्छी  गज़ल केलिए

बहुत -२ बधाई आपको ..  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2013 at 9:30pm

छोटी सी बहर में बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत खूब.

जमाया हथौड़ा
कहीं का न छोड़ा.........वक़्त की क्रूरता 

बना काँच का था
मुकद्दर का घोड़ा.............कब पल में तकदीर बदल जाए 

हवा में उड़ाया
जतन से था जोड़ा...........बिलकुल मेहनत का दर्द का एहसास किये बिना..जमा पूंजी उड़ा देना 

तबाही का आलम
मेरी और मोड़ा..............किसी और के किये की सज़ा भुगतना 

बेरह्मी से दिल को
कई बार तोड़ा........................उफ़ 

रगों से लहू को
बराबर निचोड़ा....................बेबसी , दर्द की इन्तेहाँ 

चली थी कहाँ मैं 
कहाँ ला के छोड़ा................सपनों का टूट जाना, 

मुकद्दर पे ताना
कसे मन निगोड़ा................वाह वाह 

यही 'राज' तेरी
कहानी का रोड़ा...........................अरे रोड़ा कहाँ ये तो इतना प्रबल प्रवाह है हर रोड़ा हटा दे ....:)))

हार्दिक दाद कुबूलें इस शानदार ग़ज़ल पर आदरणीय राजेश जी .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2013 at 8:40pm

प्रिय संदीप आपकी प्रतिक्रिया का तहे दिल  से स्वागत है |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 8:31pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
कारीगरी अच्छी है उसके लिए बहुत बहुत बधाई आपको
किन्तु ग़ज़ल के एक अशआर में ही पूरी बात समाप्त हो जाती है
उसकी कहीं न कहीं कमी सी लगी
बाकी गुरुजनों की राय का इंतज़ार होगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service