बस कुछ दिनों की बात है, ये वक़्त गुज़र जाएगा
मौत के अंधेरे को चीर के फिर उजला सवेरा आएगा
समय सब्र रखने का है, एक व्रत रखने का है
अगर संयम से चले हम तो फिर ये संकट भी टल जाएगा
बस कुछ ................................................
है प्रार्थना सभी से मिलकर साथ रहो तुम सब
बहूत देख लिया जग हमने, बस घर मे रहो सारे अब
जो घर ना बैठे हम अब तो काल निगल जाएगा
अपनों के शवों पर हमको तड़पता छोड़ जाएगा
बस कुछ .........................................................
बहूत क़ैद किया हमने बेजुबान साथियों को
पूरा सोख लिया हमने प्रकृति के खज़ानों को
ये वक़्त है जागने का सोये तो निकल जाएगा
फिसलती डोर को जो न पकड़ा तो गिर जाएगा
बस कुछ ..............................................................
आज मानव खुदके ही मकड़जाल मे है उलझा
आग जिसने लगाई थी वही हाथ है आज झुंलसा
आज भी सुधर गए तो विनाश थम जाएगा
गर छुप पाए हम तो हर काम सम्हल जाएगा
बस कुछ ................................................................
विश्व सम्राट बनने की चाह मे विश्व को ही चबा बैठे
अपनी शक्ति आजमाने मे आपनो को ही गंवा बैठे
इंसानियत से जो रहे हम हर हैवान पिघल जाएगा
बर्बादियों का ये आलम एक रोज़ ठहर जाएगा
बस कुछ ....................................................................
है अपना धर्म प्राचीन आज सबने यही माना
क्यों जोड़े हाथ हम नितदिन सबने ये रहस्य जाना
जो स्वछ रह सके हम ये रोग भी थम जाएगा
खुदको जो बचा पाये तो ये देश भी बच जाएगा
बस कुछ ...................................................................
है पीढ़ियाँ जो आनी, क्या देखेंगी वो आगे
वीरान मौत का समंदर देखेंगे सब अभागे
मिलना जो आज ना छोड़ा मिल पाएंगे ना कभी हम
सांस की कमी से छोड़ेगे प्राण भी हम
प्रण ले लिया जो हमने कार्य सिद्ध हो जाएगा
बस कुछ .....................................................................
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
सुंदर सृजन आदरणीय
आदरणिय समर कबीर साहब,
मैं दुसरों के रचनाओ को पढने एवंं टिप्पणी करने का सतत प्रयत्न करता हूँ। किंतु अति व्यस्तता के कारण उचित व्यवहार ना कर पाने का दोषी खुद को हीं मानता हूँ।
जनाब अमन सिन्हा जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें I
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