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विनय कुमार's Blog – February 2015 Archive (3)

सज़ा--

" बाई , कल से काम पर मत आना "|

" लेकिन मेमसाब , मैंने तो कुछ नहीं किया "|

कहना तो चाहती थी " हाँ , तुमने तो कुछ नहीं किया लेकिन साहब को तो नहीं कह सकती मैं ", लेकिन जुबाँ ने साथ नहीं दिया |

बाई हिकारत से देखती हुई चली गयी , उसके अंदर कुछ दरक सा गया |

मौलिक एवम अप्रकाशित  

Added by विनय कुमार on February 18, 2015 at 10:17pm — 20 Comments

न्याय (लघुकथा)

दोपहर में घंटी बजने पर उसने दरवाजा खोला तो वो दरिंदा जबरदस्ती अंदर घुस आया और उसकी अस्मिता को तार तार कर गया | अब शरीर तो जिन्दा बच गया लेकिन आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी | एक ऐसा हादसा जिसके लिए जिम्मेदार वो नहीं थी लेकिन भुगतना उसी को था |
पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी , शायद अब वो किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाएगी | एक वहशी की गलती की सज़ा अब पूरे पुरुष समाज को भुगतनी होगी |

.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on February 4, 2015 at 12:30am — 18 Comments

नजरिया--

चाय का घूंट लेते हुए उनकी नज़र अखबार की एक खबर पर चली गयी. इलाके में एक लड़की की इज़्ज़त लुटी, आरोपी फरार"|

मन ही मन में राहत की सांस लेते हुए उन्होंने बगल में बैठी पत्नी से कहा " अच्छा हुआ , हमारी लड़की नहीं हुई वर्ना हमें भी डर के रहना पड़ता "|

पत्नी ने एक गहरी सांस ली और पिछले दिन का अखबार निकाला , पहले पन्ने पर छपी हुई तस्वीर जिसमें लड़कियां गणतंत्र दिवस के परेड की अगुआई कर रहीं थीं , उनके सामने रख दिया | चाय उनके हाँथ में ठंडी हो रही थी , वो पत्नी से नज़र नहीं मिला पा रहे थे…

Continue

Added by विनय कुमार on February 1, 2015 at 7:00pm — 12 Comments

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