मेरी बेटी ने गमले में
लॉलिपॉप बो दिया हैI
खुद को पूरा भिगो कर
पानी भी देती है
मिठास की लहलहाती फसल का
इंतज़ार कर रही है I
पगली ने उस दिन
कागज़ का तिरंगा भी बो दिया था
कि ढेर सारे तिरंगे
ढेर सारा देश प्रेम उगेगा I
बच्चों की बातें हैं
ऐसी ही बेतुकी ,नासमझ I
हम तो बड़े हैं ,समझदार हैं
हम थोड़ी करते हैं विश्वास
इन बातों पर ,हैं ना ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
रचना पर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी
अत्यंत सान्द्र प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय प्रतिभाजी. सही कहूँ तो बहुत दिनों बाद मंच पर इतनी गहन रचना आयी है और मैं उससे गुजर रहा हूँ. लाक्षणिकता का इतना सार्थक प्रयोग हुआ है कि यह रचना एकदम से चकित करती हुई हृदय में बस जाती है. आपकी अभिव्यक्तियों से हम एक-एक कर गुजर रहे हैं, मानों ये हमें अपने में गहरे उतरने की आवाज़ लगा रही हों.
आप प्रयासरत रहें, आदरणीया प्रतिभाजी. आपका सतत प्रयास आपकी अभिव्यक्तियों की सहजता और स्पष्टता का कारण बनता जायेगा.
अलबत्ता, बेतुकि को बेतुकी कर लें
हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीय मिथिलेश जी ,सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका , 'बेतुकि? क्या ये शब्द सही नहीं ?
आदरणीय श्याम नारायण जी ,उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीय सतविंदर जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार
शानदार कविता. कथ्य का मर्म जिस सघनता से शाब्दिक हुआ है, बस दिमाग झन्ना गया है. बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर आपको आदरणीया प्रतिभा जी.
'बेतुकि?'
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