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Amod Kumar Srivastava's Blog – March 2013 Archive (3)

लम्बे दिन

याद है ....

पहले की दिन कितने

बड़े होते थे

अम्मा तीन बार जगाती थी..

तब कहीं ७(सात) बजा करते थे..

नाश्ता करके ..

उछलते हुए स्कूल जाना

रास्ते में ठेले से केले खींचकर खान

आधी छुट्टी में स्कूल के बाहर

खड़े ठेले से चाट खाना ...

छुट्टी होते ही दोड़ते हुए

घर की तरफ भागना ...

कितना मज़ा था ...

उन दिनों का ..

अम्मा का दौड़ा .. दौड़ा कर खाना खिलाना ..

और समय होता था बस दोपहर का २(दो)

वाकई पहले के दिन कितने

बड़े होते थे… Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on March 29, 2013 at 5:03pm — 6 Comments

"बैठक"

याद है

वो अपना दो कमरे का घर

जो दिन में

पहला वाला कमरा

बन जाता था

बैठक !!

बड़े करीने से लगा होता था

तख्ता, लकड़ी वाली कुर्सी

और टूटे हुए स्टूल पर रखा…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on March 22, 2013 at 4:30pm — 4 Comments

अनाम रिश्ते

कुछ रिश्ते अनाम होते हें

बन जाते हें

यूँ हीं, बेवजह, बिना समझे

बिना देखे, बिना मिले ....

महसूस कर लेते हें एकदूजे को

जैसे हवा महसूस कर ले खुशबु को

मानो मन महसूस कर ले आरजू को

मानो रूह महसूस कर ले बदन…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on March 20, 2013 at 2:00pm — 7 Comments

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"आदरणीय चेतन जी बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका मक़्त के में सुधार की कोशिश करती हूं सादर"
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Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी बेहतर इस्लाह ऑयर हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका सुधार करती हूँ सादर"
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"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी और अमीर जी के सुझाव क़ाबिले…"
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