For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

S. C. Brahmachari's Blog – March 2014 Archive (5)

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

 

तुम सुंदर हो , तुम भोले हो

नटखट तुम हो बहुत सलोने ।

रूठ - रूठ जाते क्यूँ मुझसे ?

छुप छुप कर बादल के कोने ।

तुम बादल से झांक झांक कर, अपना रूप दिखाते क्यूँ हो

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

मुझसे स्नेह नहीं है, मानूँ –

तुम छुप जाओ नज़र न आओ ।

चंद्र बदन ढँक लो तुम अपना

मेरी बगिया नज़र न आओ ।

आँख मिचौली खेल खेल कर, रह रह मुझे रिझाते क्यूँ हो

चाँद मुझे…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on March 31, 2014 at 5:00pm — 8 Comments

विजय – पराजय

विजय – पराजय

 

वह जो मैंने सपने मे देखा

सोने की गाय

कुतुबमीनार पर घास चर रही थी , और –

नीचे ज़मीन पर बैठा कोई ,

सूखी रोटियाँ तोड़ रहा था ।

अचानक कुतुब झुकने लगा

मुझे ऐसा लगा, जैसे -

वह झुक कर स्थिर हो जाएगा

पीसा के मीनार की तरह

और बनेगा

संसार का आठवाँ आश्चर्य ।

पर, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ

वह धराशायी हो गया

गाय कहाँ गयी , कुतुब कहाँ गया

कह नहीं सकता

किन्तु सूखी…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on March 26, 2014 at 9:30pm — 9 Comments

पुजारिन

सौतेली माँ

जब मैं छोटा था

भूख से तड़पता था

लेकिन अब –

वो हर वक्त पूछती है

बेटा खाना खाओगे !

.            

पुजारिन

करबध्द खड़ी है

न जाने कब से ?

मीरा की तरह

और , कन्हैया –

किसी राधा के साथ

रास रचाने

निकल गए हैं ।

  --- मौलिक एवं अप्रकाशित ---

Added by S. C. Brahmachari on March 23, 2014 at 8:00pm — 8 Comments

आया लो फागुन का मौसम

     आया लो फागुन का मौसम

 

आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !

वासंती  बयार ने  तेरे -

कोमल कुंतल को बिखराए,

गजब ढा रही तेरी बिंदिया-

गालों पर फागुन छा जाये ।

तेरा बदन गुलाल हुआ , अपनी ज़ुल्फों मे खो जाने दो

आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !

फागुन के मौसम मे तुम पर

फूलों की  बरसात  हुयी  है,

अंग अंग फागुनी हुआ ,और –

कामदेव  की  दुआ हुयी  है।

कैसे संयम करूँ प्रिये…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on March 17, 2014 at 10:30pm — 4 Comments

सीमाओं मे मत बांधो

   सीमाओं मे मत बांधो

 

सीमाओं मे मत बांधो, मैं बहता गंगा जल हूँ ।  

गंगोत्री से गंगा सागर

गजल  सुनाती  आई

गंगा की लहरों से निकली –

मुक्तक  और   रुबाई ।                                

भावों मे डूबा उतराता , माटी का गीत गजल हूँ

सीमाओं मे मत बांधो , मैं बहता गंगा जल हूँ ।

यमुना की लहरों पर –

किसने प्रेम तराने गाये ?

राधा ने  कान्हा संग –

जाने कितने रास रचाए ?

होंगे महल दुमहले कितने, मैं…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on March 8, 2014 at 5:14pm — 15 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service