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राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी''s Blog – March 2012 Archive (9)

हमको बहुत लूटा गया - 2

हमको बहुत लूटा गया,

फिर घर मेरा फूंका गया.

 

झगड़ा रहीम-औ-राम का,

पर, जान से चूजा गया.

 

दर पर, मुकम्मल उनके था,

बाहर गया, टूटा गया.

 

भारी कटौती खर्चो में,

मठ को बजट पूरा गया ,

 

मजलूम बन जाता खबर,

गर ऐड में ठूँसा गया. (ऐड = प्रचार/विज्ञापन/Advertisement)

 

उत्तम प्रगति के आंकड़े,

बस गाँव में, सूखा गया.

 

वादा सियासत का वही,

पर क्या अलग बूझा गया!!

 

है चोर, पर…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 24, 2012 at 11:30pm — 22 Comments

हमको यहाँ लूटा गया

हमको यहाँ लूटा गया,

वादा तेरा झूठा गया.



वो कब मनाने आये थे?

हम से नहीं, रूठा गया.



चोटें तो दिल पर ही लगी,

खूं आँख से चूता गया.



जो चुप रहे, ढक आँख ले,

राजा ऐसा, ढूंढा गया.



पैसों से या फिर डंडों से,

सर जो उठा, सूता गया.



दारु बँटा करती यहाँ!

यह वोट भी, ठूँठा गया. (ठूँठ = NULL/VOID)



संन्यास ले, बैठा कहीं,

घर जाने का, बूता गया.



नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो?

दिन आज भी रूखा गया.…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 24, 2012 at 12:30am — 16 Comments

मैखाना है

ऐसा लगता है की मेरा यों अब गुजरा जमाना है,

बेगाना रुख किये 'साकी'! यहाँ तेरा मैखाना है.



फकीरों को कहाँ यारो कभी मिलता ठिकाना है,

बना था आशियाना, आज जो बिसरा मैखाना है!



कभी अपना बना ले पर कभी बेदर्द ठुकरा दे,

सयाना जाम साकी! और आवारा मैखाना है.



तेरी हर एक हंसी पर ही चहक कर के मचल जाना.

हमेशा हुस्न-ए-जलवो पर जहाँ हारा मैखाना है.



तेरी तस्वीर के बिन ही मै पीने आज बैठा हूँ,

ख़ुशी या गम हो जुर्माना मुझे मारा मैखाना है. …

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 21, 2012 at 9:35am — 14 Comments

जिंदगी ले के चली

जिंदगी ले के चली, एक ऐसी डगर,

राह के उस पार, चलते हैं हम सफ़र. 



रात और दिन, मील के पत्थर जैसे हैं,

मोड़ बन जाते कभी, हैं चारों पहर.

  

फादना पड़ता है, दीवारें अनवरत,

ढूँढना चाहूँ मै, 'उसको' जब भी अगर.

 

शख्शियत में नये, बदलता हूँ धीरे से,

नये चेहरे मिले और, नये से राही जिधर.



द्वार-मंदिर मिले न मिले, पर चाहतें,

बांहों में ही भींचे रहती हैं, ता-उमर.



जिंदगी में लेने आता, एक बार पर-

बैठती हूँ रोज, 'बस्तीवी'…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 17, 2012 at 9:07am — 13 Comments

दिन फिर गये जो जी रहे अब तक अभाव में

दिन फिर गये जो जी रहे अब तक अभाव में,

वादों से गर्म दाल परोसी चुनाव में.

ढूंढे नहीं  मिला एक भी रहनुमा यहाँ,

सच कहने सुनने की हिम्मत रखे स्वभाव में.

 

तब्दीलियाँ है माँगते यों ही सुझाव में,

फिर भेज दी है मूरतियां डूबे गाँव में,

दिल्ली में बैठ के समझेंगे वो बाढ़ को,

लाशें यहाँ दफ़न होने जाती है नाव में.

 

पूछा क्या रखोगे…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 14, 2012 at 10:00am — 14 Comments

मांग मत अधिकार अपना

मांग मत अधिकार अपना, ये अनैतिक कर्म है,
ठेस लगती है, हुकूमत का बहुत दिल नर्म है.
 
हक हमारा कुछ नहीं, पुरखे हमारे लापता,
हर तरक्की के लिए, बस 'द्रष्टि उनकी' मर्म है.
 
सैर को आये कभी जब, मान उपवन गाँव को,
खेत सूखे देख कर, गर्दन झुकी है, शर्म है.
 
कह दिया गर, 'भूख से हम मर रहे है ऐ खुदा!'
ज्ञान मिलता, सब्र और विश्वास रखना धर्म…
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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 11:00am — 25 Comments

होली नहीं तो क्या मज़ा!

जिंदगानी में अगर होली, नहीं तो क्या मज़ा.

गर नशे में भाँग की गोली, नहीं तो क्या मज़ा.

मानता त्यौहार हूँ, है भजन पूजन का दिन,

पर वोदका की बोतलें खोली, नहीं तो क्या मज़ा.

टेसुओं गुलमोहरो के रंग से मत रंगिये,

दो बदन में कीचड़ें घोली, नहीं तो क्या मज़ा.

छुप के गुब्बारे भरे, रंग फेकते बच्चे यहाँ!

खुल के रंगी चुनरे-चोली, नहीं तो क्या मज़ा.

रोकने से रुक गए क्योँ हाथ तेरे रंग भर,

भाभीयो ने गालियाँ तोली, नहीं तो क्या…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 8, 2012 at 10:41pm — 6 Comments

दुनियादारी के दस हाइकू

फूटा ठीकरा

शेख बच निकला

तू था मुहरा

 

ढूंढ़ बकरा

शनैः रेत लो गला

दे चारा हरा

 

बेजुबाँ खरा

हक माँगने लगा

तो दोष भरा

 

अना दोहरी

नश्तर सी चुभन

दगा अखरी!

 

यहाँ खतरा

ईश्वर हुआ अंधा

इन्सां बहरा

 

यार बिसरा

अब यहाँ क्या धरा

चलो जियरा

 

छटा कुहरा

छद्म बंधन मुक्त

पिया मदिरा

 

समा ठहरा

इंद्रधनुषी दुनिया

नशा…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 10:30am — 17 Comments

जबान पर मसाला

हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,

अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.



पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,

जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 10:30am — 20 Comments

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