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मै भी लड़ना चाहती हूँ! मुझे लड़ने दो!

हार का मै स्वाद चखना चाहती हूँ.

जीत का अभ्यास करना चाहती हूँ.

.

प्रेयसी बन बन के हो गई हूँ बोर!

मै नए किरदार बनना चाहती हूँ.

मै भी जिम्मेदार बनना चाहती हूँ.

.

सीता-गीता मेरे अब नाम मत रखो!

धनुष का मै तीर बनाना चाहती हूँ,

गरल पीकर रूद्र बनना चाहती हूँ.

.

अपने पास ही रखो हमदर्दी अपनी!

खड़े होकर सफ़र करना चाहती हूँ,

'बसो' का मै ड्राइवर बनना चाहती हूँ.

मै भी लड़ना चाहती हूँ.

.

मेरी राह के हर एक दीपक बुझा दो!

बिजली के खम्भे बनना चाहती हूँ.

स्वयं जलकर भस्म बनना चाहती हूँ.

.

नर्स या फिर शिक्षिका नहीं केवल!

कोयले की खान खोदना चाहती हूँ,

ओलम्पिक से पदक लाना चाहती हूँ.

.

बस! अब और नहीं चाहिए आरक्षण!

मै तो बस एक हक चाहती हूँ,

"भ्रूड में मै नहीं मरना चाहती हूँ."

लड़की हूँ तो क्या हुआ! मै भी लड़ना चाहती हूँ.

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Comment

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 16, 2012 at 2:35pm

राकेश भाई खूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !! प्रभावकारी अभिव्यक्ति !!

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 17, 2012 at 10:16am

Aadarneey Saurabh ji, Pradip ji, evam bhai Arunendra JI, Aap logo ki hausalaa afjai ke liye bahut bahut aabhar.

Arunendra bhai, IIT me 'show your talent' nahi likha tha :) Yahan likha hai.

Shri Saurabh ji, jo aaj kal ke samaaj me dekh raha hun parivartan vahi likhane ki koshi hai bas.

Shri Pradip ji, Ji aapke Ashirvad se rachana me nayi jaan aa gayi. Dhanyvaad.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2012 at 10:46pm

snehi rakesh ji, kamal,

kya bhav aur kya sandesh 

nari ka sundar naya parivesh

bha gayi aap ke man ki baat 

diya aapne kitna sundar sandesh

nari hogi aur shashakt 

ghutne ab na vo tekegi

bhikh aarakshan ki tyag 

aage purush se daudegi

badhai, badhai, badhai.

Comment by arunendra mishra on April 14, 2012 at 9:58am

राकेश भाई सही जा रहे हो ....IIT में तो न दिखाया ये हुनर ....अच्छी अभिव्यक्ति ....



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2012 at 4:49am

कुछ कथ्य सपाट होकर विशेष संप्रेषणीय हो जाते हैं. राकेशजी, यही सपाटपन आपकी इस रचना की जान है. आपकी इस कोशिश ने मुझे वास्तव में चौंकाया है.

बहुत अच्छे.. .

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 13, 2012 at 10:04am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर नमस्कार, जी आपकी शाबाशी और हौसला अफजाई मुझे यहाँ तक महसूस हो रही है, और आप लोगो की ही तरह अच्छी बातें सभी लोग तक पहुचाने का प्रयत्न रहेगा. सादर धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2012 at 9:22pm

वाह ए बिग शाबाश आपको राकेश त्रिपाठी जी काश सभी के आप जैसे विचार हों वैसे आज की पीढ़ी आशान्वित कर रही है पुरानी सड़ी गली सोच बदल रही है गाँव में यह सोच बदलने में वक़्त जरूर लगेगा बहरहाल आपको इस विषय पर लिखने के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 12, 2012 at 7:38pm

Respected Dr. Prachi ji, Namaskaar. Thanks for your appreciations and blessings. As I have discussed with Mahima ji, that this poem is truly inspired by my sister's attitude towards life, work and handling pressure. Infact she is much smarter than me in taking many decisions etc. However the whole objective of this poem is to find new symbols and breaking old images of Ladies which traditionally come with love, beauty and for many poets betrayal etc. Which is completely not true for ladies of this generation who are ambitious, and trying to find new avenues.Thanks again for your appreciation.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 12, 2012 at 2:13pm
महिमा जी, सादर धन्यवाद, ये कविता मैंने अपने बहन को देख कर लिखी है, की वो किस तरह से मुझसे बिलकुल भी कम नहीं है, चाहे पढ़ने में या फिर जद्दोजहद में. जिस व्यक्ति को समाज में खुद को स्थापित करने हेतु संघर्ष करना आता है, उसे और कुछ नहीं चाहिए, उसे बस बराबर का मौका चाहिए. बस यही भाव ले कर लिखा है.
Comment by MAHIMA SHREE on April 12, 2012 at 2:04pm
राकेश जी नमस्कार ,
अच्छा प्रयास ... थोडा चोंका भी दिया ,.आपने लड़कियों के मन को समझ और सवेंदनशीलता के साथ बहुत अच्छी कोशिश की है भाव भी बहुत सही आये है..आपका बहुत-२ धन्यवाद
इस विषय पर दो कवितायेँ है जल्द ही आप सबके बीच लायुंगी..
बहुत-२ बधाइयाँ

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