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Abhinav Arun's Blog (149)

ग़ज़ल :-मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत

ग़ज़ल :- मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत

कैद बेशक है आज पिंजर में ,

हौसला है मगर अभी पर में |

 

मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत ,

जी रहे हम न जाने किस डर में |

 

हत परिंदों को बचाता है कौन…

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Added by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:00am — 7 Comments

ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर

ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर

 

कुछ था ज़रूर खास बनारस के घाट पर ,

धुंधला दिखा लिबास बनारस के घाट पर |

 

घर था हज़ार कोस मगर फ़िक्र साथ थी ,

मन हो गया उदास बनारस के घाट पर |

 

संज्ञा क्रिया की संधि में विचलित हुआ ये मन

गढ़ने लगा समास बनारस…

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Added by Abhinav Arun on February 1, 2011 at 9:00am — 13 Comments

ग़ज़ल :- डूब रहे से नाव की बातें

ग़ज़ल :- डूब रहे से नाव की बातें

डूब रहे से नाव की बातें ,

थोथी है बदलाव की बातें |

 

राजनीति के दुर्दिन आये ,

सब करते अलगाव की बातें |

 …

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Added by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:30pm — 3 Comments

कविता :- परिंदों दे दो

परिंदों दे दो

अपने दाने दाने

पाने के संघर्ष के पल

हम मानवों…

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Added by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:00pm — 2 Comments

कविता : - केवल तूने ही नहीं खाईं गोलियाँ ..

कविता : -केवल तूने ही नहीं खाईं गोलियाँ ..

बापू केवल…

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Added by Abhinav Arun on January 26, 2011 at 7:00pm — 10 Comments

कविता :- कहाँ गणतंत्र

कविता :- कहाँ गणतंत्र

 

फेल हुए सब मंत्र…

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Added by Abhinav Arun on January 25, 2011 at 3:51pm — 10 Comments

लेख :- जाना बालेश्वर का

लेख :-जाना बालेश्वर का

प्रख्यात लोक गायक बालेश्वर यादव का दिनांक ०९ जनवरी २०११ को लखनऊ में निधन हो गया | धन्य हो कुछ खबरिया चैनेलों का और अखबारों का जो उनके प्रशंसक इस समाचार  वाकिफ हो सके | अन्यथा आज भोजपुरी संस्कृति जिस बाजारवाद की शिकार है उसमें इन पारंपरिक लोकगायकों को लोग भूल गये हैं | बालेश्वर १९४२ में मऊ जनपद में जन्में मुझे याद है मेरा गांव में गुज़रा बचपन जहां उनका 'निक लागे टिकुलिया…

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Added by Abhinav Arun on January 11, 2011 at 7:58am — 3 Comments

कथ्य-शिल्प गोष्ठी-०३ एक रपट

 कथ्य-शिल्प गोष्ठी-०३ एक रपट
तीसरी कथ्य-शिल्प गोष्ठी रविवार 09 जनवरी 2011 को बनारस के कालीमहाल में कवि अजीत श्रीवास्तव के निवास पर हुई | इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ नवगीतकार पंडित श्रीकृष्ण तिवारी ने की | चयनित रचनाकार नरोत्तम शिल्पी ने प्रारंभ  में अपनी दस रचनाओं का पाठ किया | तरन्नुम और तहत में कही गयीं उनकी गज़लें सराही गयीं |
पंडित श्रीकृष्ण तिवारी ने इस अवसर पर कहा की वरिष्ठ रचनाकारों का यह दायित्व है की नवोदित लेखकों को आगे लायें और उन्हें…
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Added by Abhinav Arun on January 10, 2011 at 3:00pm — No Comments

ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है

 

ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है

 

चार पैसा उसे हुआ क्या है

पूछता फिर रहा खुदा क्या है |

 

हर जगह तो यही करप्शन है

रोग बढ़ता गया दवा क्या है |

 

तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब

पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |

 

तेरे जाने पर अब ये…

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Added by Abhinav Arun on January 5, 2011 at 4:16pm — 12 Comments

ग़ज़ल:- आकर्षक चमकीले लोग

 

ग़ज़ल:- आकर्षक चमकीले लोग

 

आकर्षक चमकीले लोग

केंचुल में ज़हरीले लोग |

 

आत्ममुग्धता की परिणति हैं

सुन्दर सुघड सजीले लोग |

 

भूख की आंच पे चढ़ते हैं नित

खाली पेट पतीले लोग |

 

झंझावाती जीवन सागर

हम शंकित रेतीले लोग |

 

चीर हरण करते आँखों से

कुंठाओं के टीले लोग…

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Added by Abhinav Arun on January 2, 2011 at 10:45am — 3 Comments

कहानी : -ये कहानी नहीं

..एक व्यथा ...कथा नहीं यह

नीलेश और रोमा आज कुछ जल्दबाजी में थे |कल रात को भी नीलेश अपनी ड्यूटी कुछ जल्दी छोड़कर घर आ गया था |और भोर से ही रोमा…

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Added by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 10:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल :- आदमी हो कि आदमी भी नहीं

ग़ज़ल :- आदमी हो कि आदमी भी नहीं

 

तुझसे बर्दाश्त ये खुशी भी नहीं

घाट पर पूजा बंदगी भी नहीं |

 

जिसने बम फोड़ा उसका मकसद क्या

हम करें माँ की आरती भी नहीं |

 

स्वस्तिका पूछ रही है मरकर

आदमी हो की आदमी भी नहीं |

 

फाइलों…

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Added by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 8:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल : - याद तेरी में

ग़ज़ल : - याद तेरी में

याद तेरी में गुनगुनाता हूँ

ज़िंदगी को करीब पाता हूँ |

 

शीत कहती मुझे तू छू कर देख

और…

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Added by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 8:00pm — 2 Comments

कथ्य-शिल्प गोष्ठी-०२ एक रपट

कथ्य-शिल्प गोष्ठी-०२ एक रपट
बनारस की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था द्वारा कथ्य शिल्प गोष्ठी का आयोजन रविवार १२ दिसंबर को चेतगंज स्थित मंशाराम फाटक सभागार में किया गया |अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार और 'सोच-विचार'के संपादक डॉ.जीतेंद्र नाथ मिश्र ने की |विषय प्रवेश दानिश जमाल ने किया |
इस बार चयनित युवा रचनाकार अभिनव अरुण (अरुण कुमार पाण्डेय अभिनव)ने अपनी चुनिन्दा दस रचनाओं का पाठ किया | इस पर…
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Added by Abhinav Arun on December 13, 2010 at 1:54pm — 4 Comments

कविता :- माफ करना स्वस्तिका

कविता :- हमें माफ करना स्वस्तिका

हमें माफ करना स्वस्तिका

हमने भुला दी है इंसान होने की संवेदना

अब हमें तुम्हारे…

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Added by Abhinav Arun on December 10, 2010 at 4:51pm — 14 Comments

ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ

ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ

मैं ही रुसवा हुआ ज़माने में

नाम उसका नहीं फ़साने में |



उन चरागों को दुआएं दे दूं

खुद जला मैं जिन्हें जलाने में |



चोंच खाली लिए लौटे पंछी

बच्चे भूखे रहे ठिकाने में |



कैसे कह दूं कि यह घर छोटा है

उम्र गुजरी इसे बनाने में |



तुम कि गंगा का दर्द क्या सुनते

तुम तो मशगूल थे नहाने में |



एक भरम है चमन की रंगों-बू

है मज़ा तितलियाँ… Continue

Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 4:16pm — 9 Comments

ग़ज़ल:-जिस रोज़ से आईना

ग़ज़ल:-जिस रोज़ से आईना



जिस रोज़ से आईना मेरे पास नहीं है

औरों को मेरी शक्ल का एहसास नहीं है |



उसको मैं अपने राज़ बताता भी किस तरह

बेहद अज़ीज़ है वो मेरा ख़ास नहीं है |



बूढ़े फ़कीर ने मुझे उड़ने की दुआ दी

फिर ये कहा तकदीर में आकाश नहीं है |



बेशक मेरे हैं पांव हुनर तेरा दिया है

तेरे बगैर चलने की अब आस नहीं है |



तालाब के करीब कहीं यक्ष तो नहीं

आकर क्यों लगा… Continue

Added by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 3:57pm — 7 Comments

लघु कथाएँ

पत्थर



वह रोज उसे ठोकर मारता |

आते जाते |

मगर वह टस से मस नहीं हुआ |

एक दिन जोर की ठोकर मारते ही उसके पांव लहू लुहान हो गए |

अब वह उस पत्थर की पूजा करता है |

हाँथ जोड़कर उसी तरह रोज आते जाते |



पानी



बाप ने कहा "बेटा पानी अब सर से ऊपर हो रहा है "

"आप वसीयत कर दे "

"तुम्हारी बहन को भी तो हिस्सा देना होगा "

"शादी में जितना दिया था उसका हिसाब… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:55pm — 6 Comments

कविता _ ठूंठ

कविता :- अखिल विश्व और हम



ठूंठ वृक्ष

सूखे सब पत्ते

कोटर भी पक्षी विहीन

हम कितने एकल |



छोड़ गए सब साथ

हाथ और राह भी छूटी

मील के पत्थर भी उदास

और बेकल बेकल |



संधि काल या महाकाल

क्यों स्याह घनेरा

तुम नित प्यासे

आस भरे आते जाते पल |



दूब पांव की

कोमलता की याद दिलाती

पीछे छूटे गांव छांव सब झुरमुट वाले

हम फिर चलते जैसे चलते आज और कल… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:05pm — 2 Comments

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