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ग़ज़ल:- आकर्षक चमकीले लोग

 

ग़ज़ल:- आकर्षक चमकीले लोग

 

आकर्षक चमकीले लोग

केंचुल में ज़हरीले लोग |

 

आत्ममुग्धता की परिणति हैं

सुन्दर सुघड सजीले लोग |

 

भूख की आंच पे चढ़ते हैं नित

खाली पेट पतीले लोग |

 

झंझावाती जीवन सागर

हम शंकित रेतीले लोग |

 

चीर हरण करते आँखों से

कुंठाओं के टीले लोग |

 

स्वार्थ की धूप में पानी पानी

बे उसूल बर्फीले लोग |

 

पथरीली चौपाल देश की

चर्चा में पथरीले लोग |

 

गांव में आकर शहर खा गये

परिश्रमी फुर्तीले लोग |

 

गिरगिट जैसा रंग बदलते

चापलूस चमचीले लोग |

 

ज़्यादातर अव्वल आला हैं

अवसरवादी ढीले लोग |

 

 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on January 11, 2011 at 6:09am
आशा दीदी नमस्कार !! आपने गज़ल पढ़ी , सराही , और प्रतिक्रिया दी मैं आभारी हूँ | .. अब मैं आपकी वो गज़ल ढूँढता हूँ जो इसके करीब है (... हा हा हा ..)| अक्सर भावनाएँ ..संवेदनाएं ..स्थितियां ... और शब्द संस्कार एक से हो तो रचना में साम्यता संभव हो जाती है आप स्वयं एक सशक्त रचनाकार हैं .. आप खोऊब आगे बढ़ें खूब लिखें प्रसिद्ध हो ..यही कामना है | स्नेह बनाये रखियेगा | नवीन जी भी अक्सर यही बात कहते हैं की मेरी ग़ज़लों में उनकी अपनी ग़ज़लों की परछाई दिखती हैं | मैं तो अपने को वास्तव में एक सीखता हुआ हाशिए का साहित्यकार मानता हूँ और साहित्यकार कहा जाना बड़ी बात है मैं तो एक एक्टिविस्ट हूँ जो सामजिक विसंगतियों पर अपने को कहने से रोक नहीं पाता बिना लागलपेट के |पुनः आभार आशा दीदी !!!
Comment by asha pandey ojha on January 10, 2011 at 7:58pm
वाह अरुण भइया .. मेरी एक रचना से बहुत करीब है यह ...गज़ल .. जो मैंने ओ बी ओ पर बहुत पहले साझा की .. बहुत कमल की गज़ल कही आपने 
Comment by Abhinav Arun on January 3, 2011 at 2:59pm

शेष जी आभार और नव वर्ष मंगलमय हो !!

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