ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !
अब तो कम खुद पे भरोसा या रब ,
ज़िंदगी है या शगूफा या रब |
लड़की रस्सी मदारी सब तू है ,
खेल नज़रों का है धोखा या रब…
ContinueAdded by Abhinav Arun on April 9, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on April 3, 2011 at 2:47pm — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on March 20, 2011 at 6:30pm — 18 Comments
Added by Abhinav Arun on March 19, 2011 at 1:30pm — 3 Comments
ग़ज़ल :- ऐ खुदा क्योंकर तेरे सागर में सुनामी हुई
आपदा की हद हज़ारों ज़िंदगी पानी हुई ,
ऐ खुदा क्योंकर तेरे सागर में सुनामी हुई |
है नहीं कूवत लखन सी दौर के इंसान में…
ContinueAdded by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
ग़ज़ल :- खार में भी कली खिला देगा
खार में भी कली खिला देगा ,
आदमी जब भी मुस्कुरा देगा |
यह तो दस्तूर है ज़माने का ,
नाम लिख कर कोई मिटा देगा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 3:00pm — 17 Comments
ग़ज़ल:- अपने शहर में झूठ के चर्चे आम बहुत हैं
अपने शहर में झूठ के चर्चे आम बहुत हैं ,
सच कहने वालों के सर इलज़ाम बहुत हैं…
ContinueAdded by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 2:55pm — No Comments
Added by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 1:30pm — 6 Comments
ग़ज़ल : - अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं
वक्त वीरान है निशानियां फ़ना कर लूं ,
अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं |
आपकी बज़्म में अशआर कई लाया हूँ…
ContinueAdded by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 1:00pm — 6 Comments
Added by Abhinav Arun on February 27, 2011 at 7:00pm — 4 Comments
कविता :- छोड़ दूं सच साथ तेरा
हर अनुभव हर चोट के बाद
अक्सर ऐसा सोचता हूँ
छोड़ दूं सच साथ तेरा
चल पडूँ ज़माने की राह
जो चिकनी है और दूर तक जाती है
जिस राह पर चलकर
किसी को शायद नहीं रहेगी
शिकायत मुझसे
अच्छा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 26, 2011 at 1:30pm — 11 Comments
गज़ल : झूठ से इसको नफरत सी है
झूठ से इसको नफरत सी है सच्चाई को प्यार कहे ,
मेरा दिल तो जब भी बोले…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 25, 2011 at 9:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल :- कितने गडबड झाले हैं
कितने गडबड झाले हैं ,
और हम बैठे ठाले हैं |
तेल खेल ताबूत तोप में ,
घोटाले घोटाले हैं |
राजनीति अब शिवबरात है ,
नेताजी मतवाले हैं |
कलम की पैनी धार कुंद है ,
बाजारू रिसाले हैं |
बिकता नहीं साहित्य आजकल…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 12, 2011 at 7:30am — 5 Comments
रिपोर्ट :- आचार्य का बाण भट्ट काशी में
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का 'रंगमंडल' इन दिनों काशी में है | ०९ और १० फरवरी २०११ को एम.के.रैना के निर्देशन में "बाण भट्ट की आत्मकथा "का मंचन किया गया | नागरी नाटक मंडली के प्रेक्षागृह में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की इस कालजयी रचना को कलाकारों ने जीवंत…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 11, 2011 at 1:23pm — 6 Comments
रिपोर्ट :- 'हीरे जैसी धार' बनाम कथ्य शिल्प -०४
कथ्य शिल्प की चौथी मासिक कवि गोष्ठी दिनांक ०८ फरवरी २०११ को काशी के पराडकर भवन में आयोजित की गयी | अध्यक्षता पंडित श्रीकृष्ण तिवारी ने की | विशिष्ट अतिथि…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 9, 2011 at 9:46am — 2 Comments
ग़ज़ल :- ग़ज़ल मेरी में कोई छल नही है
ग़ज़ल मेरी में कोई छल नहीं है ,
समस्याएं बहुत हैं हल नहीं है |
तुम्हारी फाइलें नोटों से तर हैं ,
पियासे गांव में एक नल नहीं हैं |
तरक्की के नए आयाम देखो…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 9, 2011 at 8:31am — 6 Comments
कविता :- हर ले वीणा वादिनी !
देश को लूट कर
हक़ हकूक छीन कर
जो बने हैं बड़े
और तन कर खड़े
बेशर्म बेहया
उन दरख्तों के पत्ते और सत्ते ओ माँ !
उनकी धूर्त और मक्कार शाखाएं भी
तू हरले सभी !
तू हरले…
Added by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 4:00pm — 3 Comments
"परिवर्तन" की ८१ वीं गोष्ठी
काशी की सक्रीय संस्था "परिवर्तन" की ८१ वीं काव्य गोष्ठी दिनांक ०६ फरवरी २०११ को जनाब अफ़सोस गाजीपुरी के निवास पर हुई | इसमें बेखुद गाजीपुरी की अध्यक्षता में शाद शिकोहबादी , रोशन मुगलसरावी , अभिनव अरुण , मजहर शकुराबादी , शमीम गाजीपुरी , डॉ.मंजरी पाण्डेय ,आदि कवियों -शायरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया |संचालन डॉ. सुमन राव ने किया |
करीब पचहत्तर वर्षीय जनाब अफ़सोस गाजीपुरी इस संस्था को पिछले…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 3:43pm — 2 Comments
ग़ज़ल : - मत पढ़ो सच का ककहरा
ज़ख्म हो जाएगा गहरा ,
मत पढ़ो सच का ककहरा |
गड़ रहा आँखों में परचम ,
मैं हूँ गूंगा और बहरा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 7 Comments
ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया
छत से निकला आसमां पे छा गया ,
वो धुआं था रोशनी को खा गया |
सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,
क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |
टहनियों पर…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 13 Comments
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