For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : - अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं

ग़ज़ल : - अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं

वक्त वीरान है निशानियां फ़ना कर लूं ,

अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं |

 

आपकी बज़्म में अशआर कई लाया हूँ ,

हस्बे मामूल मै रोशन ज़रा शमा कर लूं |

 

जिन तजुर्बों ने मुझे शायरी सिखायी है ,

वक्ते रुखसत खुशी से उन्हें विदा कर लूं |

 

टाँक दूं झीळ से बदन पे चांदनी का लिबास ,

सुबह से पेश्तर चाहूँ गुनाह इतना कर लूं |

 

गो कि कुछ लोग मेरे मरने की दुआ में हैं ,

मुझको मोहलत दे खुदा उनको मै सजदा कर लूं |

 

अब तो चेहरों पे कई चेहरे लगे हैं या रब ,

किसको बेगाना करूँ किसको मैं अपना कर लूं |

(@ अभिनव अरुण # १७-०३-२००४ )

 

Views: 392

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on March 14, 2011 at 8:32am
जय ओ.बी.ओ. !!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 13, 2011 at 4:19pm
हा अरुण भाई, चर्चा से बहुत बड़ा बड़ा मसला हल हो जाता है , यह तो छोटी सी बात थी , जो बातों बातों मे ही बात बन गई | जय हो !
Comment by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 4:09pm

बागी जी आपकी सलाह जम गयी और बात बन गयी लगता है -

टाँक दूं झीळ से बदन पे चांदनी का लिबास ,

सुबह से पेश्तर चाहूँ गुनाह इतना कर लूं |

ऐसा कर दिया है | चर्चा से सात साल बाद इस शेर का रास्ता निकला आभार आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 13, 2011 at 3:50pm

अरुण भाई चूकि ग़ज़ल बोलने के अनुसार ही कही जाती है तो हम गुनाह को गुना नहीं कह पायेंगे, पूरी ग़ज़ल में आपने कहन का विशेष ध्यान रखा है, उस तरीके से आप उस शे'र के काफिया को बदलना ही पड़ेगा, कुछ इस तरह से ( मैंने भी बहर का ध्यान नहीं रखा है )

 

टाँक दूं झीळ से बदन पे चांदनी का लिबास ,

सुबह से पेश्तर एक गुनाह अदना कर लूं |

 

कुछ इस तरह का प्रयोग किया जा सकता है, वैसे मैं भी तो इस इल्म का विद्यार्थी ही हूँ |

Comment by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 3:19pm

शुक्रिया बागी भाई | इधर कुछ मार्च की व्यस्तता के कारन् समय और मिज़ाज का मेल नहीं हो पा रहा है अतः डायरी से अपनी पुरानी कथनी करनी की झलक पेश कर रहा हूँ | आपको अच्छा लगा आभारी हूँ-

टाँक दूं झीळ से बदन पे चांदनी का लिबास ,

सुबह से पेश्तर एक और मै गुनाह कर लूं |

इस शेर को बोलने में गुनाह को दरअसल हम 'गुना' (ह)

कहते है अतः यह मोहलत ली थी मैंने इस बारे में सोचा था अब इसका समाधान भी आप कर देन तो अच्छा हो ,यकय इसे ऐसे लिखा जा सकता है यदि हाँ तो कृपया कर दे-

टाँक दूं झीळ से बदन पे चांदनी का लिबास ,

सुबह से पेश्तर एक और मै गुना कर लूं |

जैसा हो बताईगा ज़रूर वरना ये शेर हटा दे इसमें से |या कोई और काफिया ?


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 13, 2011 at 2:57pm

गो कि कुछ लोग मेरे मरने की दुआ में हैं ,

मुझको मोहलत दे खुदा उनको मै सजदा कर लूं |

 

बहुत खूब अरुण भाई , क्या बेहतरीन कहन है , सभी शे'र खुबसूरत लगे , चौथे शे'र के काफियाबंदी पर नजरेसानी की आवश्यकता है | दाद कुबूल करे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service