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कविता : - रंगों की बूँदें

 

कविता : - रंगों की बूँदें

लाल लाल हरी हरी

बाल्टी में भरी भरी

तुमको ही ढूँढें

रंगों की बूँदें !

*****

तुम कहते होली है

मीठी सी बोली है

कहता गुलाल क्या

मिला कोई भाल क्या

मत हो उतावले

मेरे मन बावले !

*****

गोरी है कोरी है

कैसी बरजोरी है

ठहरे तो पिछड़ गये

प्रीत दौड बिछड गये

कौन हाथ मार गया

नेह रंग ढार गया

पिचकारी चंचल तू

रुक जाती कुछ पल तू

प्रेम फल पकने दे

उसको भी तकने दे

चुप चुप के छज्जे से

घर के दरवज्जे से !

*****

 प्रेम पत्र कौन लिखे

पाठक जब मौन दिखे

छुप छुप के रंग डाल

शर्मीले गाल लाल

आँखों की भाषा पढ़

मन में अभिलाषा गढ़

कोरा आँचल क्यूँ है

गुमसुम मांदल क्यूँ है

टेसू कचनार बेलि

पुलक पुलक करें केलि

हम सबकी होली है

खुशियों की टोली है

रंग डाल रंग डाल

नीला पीला हरा लाल !

 

  अभिनव अरुण

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on March 21, 2011 at 2:39pm
thanks gopal ji and happy holi 2 u sir |
Comment by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on March 21, 2011 at 12:27am

प्रेम पत्र कौन लिखे

पाठक जब मौन दिखे

छुप छुप के रंग डाल

शर्मीले गाल लाल

आँखों की भाषा पढ़

मन में अभिलाषा गढ़

कोरा आँचल क्यूँ है

गुमसुम मांदल क्यूँ है

टेसू कचनार बेलि

बहुत खूब
Comment by Abhinav Arun on March 20, 2011 at 6:28pm
होली की शुभकामनाये ! साथियों !!!! होली पर टिप्पणियों का सुखा ?

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