'दामिनी' चली गई दुनियां से
छोड़ गई कितने सवाल
क्या लड़की होना ही था
उसका घोर अपराध ?
जब तक फाँसी पर न लटकेंगे
उसके अपराधी
शांत न होगी रूह उसकी
कब होगा इन्साफ
कितने सपने संजोए होंगे
कितने देखे होंगे ख़्वाब
पूरे हुए,न रहे अधूरे
जिंदगी ने छोड़ा साथ
कानून की देवी की जो खुली न …
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 29, 2012 at 12:00pm — 5 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 28, 2012 at 11:31am — 6 Comments
(फाँसी से कम नहीं )
इन्हें फाँसी पर लटका दो
या गोलियों से मरवा दो
बलात्कारियों की रूह काँप जाए
इन्हें ऐसी कड़ी सजा दो
इन दरिंदों को जिंदा न छोड़ो
पहले इनके हाथ पाँव तोड़ो
जिंदा सूली पर लटका दो
लाश चील कव्वों को खिला दो
इनके घिनोने जुर्म की
और सज़ा न कोई
शर्मसार है भारत माँ
माएँ फूट फूट कर रोई
हद कर दी हैवानियत की
जली होली इंसानियत की
कड़े कर दो कानून नियम
जलाओ चिता शैतानियत…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 19, 2012 at 12:34pm — 4 Comments
हम उनके कर्ज़दार नहीं,वोह मेरे कर्ज़दार हैं
हम तो आज भी सर आँखों पे बिठाने को तैय्यार हैं
वोह चाहे तो आजमा ले, हम जीत जाएँगे
हमें अपनी दिल्लगी पे ऐतवार है
***(न सुना पाऊंगा) ***
जलता 'दीपक'हूँ हवाओं से तो बुझ जाऊँगा
न करोगे तो कभी याद नहीं आऊँगा
जलता 'दीपक'हूँ हवाओं से तो बु----
(1)धुँधली सी हो…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 10, 2012 at 12:00pm — 1 Comment
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