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Arpana Sharma's Blog – November 2016 Archive (4)

"झिलमिल धूप"/कविता - अर्पणा शर्मा, भोपाल

सर्द सिहराती शिशिर की सुबह,

भेदकर कर कोहरे की नजर,

ओसकणों को चुंबन देकर,

मेरे आँगन धूप उतर आई थी ,

गुनगुनी, ऊष्म, स्नेहिल ज्यों

एक प्रेमालिंगन ले आई थी,

रूपहली-सुनहरी सुरमाई सी,

सूर्य वधु ज्यों प्रातः लेती अंगड़ाई सी,



ये दुछत्ती खिल जाये प्यारी,

महके छोटी सी मेरी फुलवारी,

धूप ने धूम मचाई थी,

चंपा, चमेली, सेवंती की बहार सी,

गेंदे, गुलाब, हरसिंगार भी,

ज्यों सुंदरी रंगीली चुलबुलाई सी,



धूप घुस आती हर दर्रे… Continue

Added by Arpana Sharma on November 26, 2016 at 4:21pm — 8 Comments

"दिल्ली -संवेदनाएं" -कविता /अर्पणा शर्मा

सुना है भयंकर कोहरा छाया,

शीत ने दिल्ली को कँपकँपाया,

प्राणवायु को भारी बनाया,

हर तरफ इक जहरीला साया,

प्रदूषण से त्रस्त हर जीव,

जीवन श्वसन है लड़खड़ाया,

स्व-करनी भोगने का समय आया,

क्यों सब देखें दाँयें-बाँयें,

क्यों मर गईं सबकी सँवेदनाएं,

क्यों सरकार से सब अपेक्षाएँ,

और सब पर्यावरण की धज्जी उड़ाएं,

प्रबुद्ध वर्ग हो-हल्ला करे,

नियमों को अमलीजामा कौन पहनाए,

सब तरह के आक्रमण, विध्वंस,

झेल गई दिल्ली बिचारी,

अब आई इसके जीवन की… Continue

Added by Arpana Sharma on November 7, 2016 at 11:08pm — 2 Comments

"इंतजार .." कविता/ अर्पणा शर्मा

कुछ प्रतीक्षा सी रहती है,

इक अनकहा सा इंतजार होता है,

हालातों में जहाँ,

सब कुछ मुश्किल,

अनिश्चित और दुश्वार होता है,

जीवन जब अनमना सा,

केवल जीने का व्यापार होता है,

कल्पनाओं में मन की,

कहीं कोई चमत्कार होता है,

कभी सोचते हैं हम

कहीं से आकर कोई हमदम,

कर देगा सबकुछ,

बिल्कुल ठीक और उत्तम,

प्रार्थनाओं और दुआओं में,

यही इज़हार होता है,

मनचाही खुशियाँ पाने को,

दिल सबका बेकरार होता है,

हर मन की परतों में कहीं… Continue

Added by Arpana Sharma on November 5, 2016 at 3:30pm — 6 Comments

"रफूचक्कर"/हास्य -व्यंग्य कविता -अर्पणा शर्मा

देख पुलिस का पहरा सड़क पर,

गाज गिरी बिन हेलमेट के,

दोपहिया चालक पर,

हड़बड़ाया ,वो घबराया,

जब पुलिस ने उसे,

टिकट चालान का पकड़ाया,

बटुए का उसे खयाल आया,

अभी देता हूँ,

कहते-कहते वो घनचक्कर,

जल्दी से गाड़ी चला,

हुआ रफूचक्कर,

पुलिस ने नया दाँव अजमाया,

आरटीओ से घर का,

पता निकलवाया,

चालान टिकट उसके ,

घर भिजवाया,

अब ऊँट पहाड़ के नीचे आया,

फिजूल ही खुद को चूना लगाया,

जोश हुए ठंड़े, चालान भरकर,

सारी बदमाशी हुई… Continue

Added by Arpana Sharma on November 4, 2016 at 4:07pm — 2 Comments

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