शाम को जिस वक़्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 26, 2019 at 3:30pm — 4 Comments
वर्तमान राजनैतिक व्यवस्ठा पर तंज
वक्त दोहराता है अपने आप को
कैसे कैसे दिन दिखाता आपको
भूलना हम जिसको चाहें बारहा
फिर वही मंज़र दिखाता आपको
जो सबक माज़ी में तुम भूले उसे
याद फिर-फिर से दिलाता आपको
जिस के संग जैसा किया है सामने
वक्त बस शीशा दिखाता आपको
शह नहीं है खेल बस शतरंज का
मात वो देना सिखाता आपको
तुम अगर सच्चे थे तब वो आज है
फिर वो क्यूँ झूठा कहाता आपको
सांच को ना आंच होती है कभी…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 23, 2019 at 12:00pm — 1 Comment
जिनको हमने चुनकर भेजा,सत्ता के गलियारों में
उनको लड़ते देखा जैसे, श्वान लड़ें बाज़ारों में
कब क्या कैसे गुल ये खिलाते,कोई जान नहीं पाया
इनके असली रंग हैं दीखते, तीज और त्योहारों में
चोर उच्चके…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 22, 2019 at 12:30pm — 1 Comment
(13 अगस्त-2018-इटली का मोरांडी पुल हादसा)
अटठावन वर्ष की उम्र भी कोई उम्र होती है
ना तो पूर्ण रुपेण युवा और ना ही पूरे वृद्ध
तुम्हारा यूँ इस तरह अकस्मात ही चले जाना
पूरे शहर को कर गया है अचम्भित और विक्षिप्त…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 19, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
बरसों से जो ख्वाब थे देखे, पूरे हमने कर डाले
मंसूबे हर एक दुश्मन के, बिना सर्फ़ के धो डाले
धाराओं के जाल में, मज़लूमों का जो हक थे मार रहे
हमने ऐसी धाराओं के हर्फ वो सारे धो डाले
सदियों से जो जमी हुई थी, साफ़ नही कर पाया कोई
हमने ऐसी जमी मैल के, बर्फ वो सारे धो डाले
तीन दुकाने चलती रहती थीं, कश्मीर की घाटी में
हमने ऐसे बीन बीन कर, ज़र्फ वो सारे धो डाले
बार बार समझाया सबको, पर वो समझ नही पाए
हमने 'दीप' फ़िर मजबूरी में कम-ज़र्फ़…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 15, 2019 at 9:00am — 3 Comments
मुझसे ना उलझे कोई ये जान ले
मैं कोई श्लाघा नही ताकीद हूँ
तेरी मंज़िल तक तुझे पहुँचाऊगाँ
मैं कोई छलिया नही मुर्शिद हूँ
हंस रहे हैं मुझपे वो ये जान…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 6, 2019 at 4:30pm — 5 Comments
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