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Nilesh Shevgaonkar's Blog – June 2015 Archive (3)

ग़ज़ल-नूर- फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

२१२२/२१२२/२१२/

मंज़िलों का जो पता दे जाएगा

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.

.

और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा

ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.

.

दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा

फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.

.

ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा

बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.

.

आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया

फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.

.

जब वो सोचेगा हमारे वास्ते

फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

.    

“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन

मुश्किलों…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2015 at 10:54am — 31 Comments

ग़ज़ल -नूर: मेहंदी उनकी बहुत रची होगी.

२१२२/१२१२/२२ (११२)

लोग समझे कि शाइरी होगी

बात तो सिर्फ़ आप की होगी

.  

रोज़ साहिल पे आ के रुकती है

शाम की कोई बे-बसी होगी

.

तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को

ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.

.

अपने जादू से जीत लेती है

ये कज़ा भी कोई परी होगी.

.

ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया

मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.

.

मेरे दर पे ख़ुशी है आने को

आती होगी!! कहीं रुकी होगी.

.

दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं

दिल में यादों की चाशनी…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 17, 2015 at 4:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल-नूर - नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

१२१२/११२२/१२१२/११२

नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

मैं आदमी न हुआ और वो ख़ुदा न हुआ
.

.

सहर मलेगी अभी मुँह पे, रात के कालिख़

वो आफ़्ताब उछालूँगा जो हवा न हुआ. 

.

अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ

वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.

.

ये कायनात कहाँ और ऐ बशर तू कहाँ

बड़ा समझने से ख़ुद को…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:10am — 28 Comments

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