For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोहन बेगोवाल's Blog – May 2018 Archive (4)

पर्दा (लघुकथा)

पर्दा

हर समय मुस्कराता चेहरा, और दूसरों के चेहरे पे मुस्कराहट बिखेर देना उस का बाएँ हाथ का काम था।

कई बार मैं खुद छुप कर आईने के सामने उस जैसा मुस्कराने की कोशिश करता, मगर असफल रहता ।

तब खुद को कहता “क्या कमी है, अगर मैं मुस्करा दूँ तो कौन सा पहाड़ गिर जायेगा ?”

मगर कल शाम से सारा मौहला उदास नज़र आ रहा था ।

किसी ने आकर बताया कि सुबह के दस बज गए, अभी तक दरवाज़ा नहीं खुला था।

मैं और भी उदास हो गया,पता नहीं चल रहा ऐसा क्यूँ हुआ।

तब मेरे कानों में इक आवाज़ सुनाई… Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 12, 2018 at 6:18pm — 5 Comments

अपनत्व की खुशबु (लघुकथा )

शहर के बड़े शिवपुरी में उस कि अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, इस शिवपुरी में मैं कई बार अंतिम संस्कारों में शामिल हो चूका था| मगर जिस तरह का हजूम आज राजेंद्र मास्टर के साथ आया था, ऐसा मैंने कभी नहीं देखा था| सभी आंखें नम थी और इधर उधर चारों तरफ चीकें सुनाई दे रही थी किसी को उसके इस तरह जाने पे यकीन नहीं हो रहा था| 

कोई ये कह रहा था, “क्या ऐसा भी हो सकता है, मगर दुर्घटना कब, कहाँ हो जाए कहाँ पता चलता है इसके बारे कोई कुछ नहीं कह सकता”|

“मगर बचातो जा सकता है, इसके लिए प्रबंध तो…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 11, 2018 at 3:30pm — 4 Comments

अधूरा रिश्ता (लघुकथा)

वार्ड के बिस्तर पर वह निढ़ाल पड़ा है, डॉक्टर कह रहे हैं कि ये नीला पड़ गया है, उन्होंने पुलिस को भी बुला लिया है |

“नीला तो पैदा होते समय ही था, अब क्या होगा ?”, किसी पास खड़े ने कहा | 

बात निकलती हुई इस पर आ कर रुक गई, सुबह तो नए कपड़े पहन और चौर बाज़ार से खरीदी काली एनक लगा कि गया था 

काले चश्में का एक फायदा तो ये था कि आंख का टीर भी नजर नही आता था |

अभी कुछ दिन हुए घर वाली रब को प्यारी हो गई थी | 

कुछ…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 4, 2018 at 10:30pm — 5 Comments

पिता पुत्र(लघुकथा)

सतवंत पहले से ही मेरे साथ इस के बारे में बात कर चूका था। लेकिन जिस दिन से उसने मुझसे बात की थी, कोई भी पुराना साथी उसके पास नहीं आया और न ही वह किसी को मिलने गया था। मगर उस दिन से घर के लोगों ने उस से बात करना बंद कर दी थी ।

हद तो उस रोज़ हो गई जब इक दिन बाप हाथ में जूती ले कर सतवंत के पीछे दौड़ पड़ा और ये ध्यान भी नहीं किया के लोग क्या कहेंगे, तब सतवंत को लगा था कि इस जिंदगी का क्या फायदा जब बीस को पार कर चुके बच्चे पे माँ बाप को यकीन न रहे , तब कोई और क्या करे ? बड़े भाई से सतवंत ने फोन…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 2, 2018 at 7:30pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service