ग़ज़ल
2122 2122 2122
मृत्यु के अनुरक्ति का अभिसार है क्या ।
मुक्ति पथ पर चल पड़ा संसार है क्या ।।
काल शव से कर चुका श्रृंगार है क्या ।
यह प्रलय का इक नया हुंकार है क्या ।।
आत्माओं का समर्पण हो रहा है ।
दृष्टिगोचर मृत्यु का उदगार है क्या ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 11, 2020 at 5:39pm — 4 Comments
ग़ज़ल
1222 1222 1222 122
करेगा दम्भ का यह काल भी अवसान किंचित ।
करें मत आप सत्ता का कहीं अभिमान किंचित ।।
क्षुधा की अग्नि से जलते उदर की वेदना का ।
कदाचित ले रहा होता कोई संज्ञान किंचित ।।
जलधि के उर में देखो अनगिनत ज्वाला मुखी हैं।
असम्भव है अभी से ज्वार का अनुमान किंचित।।
प्रत्यञ्चा पर है घातक तीर शायद मृत्यु का अब ।
मनुजता पर महामारी का ये संधान किंचित ।।
चयन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 2, 2020 at 4:23pm — 9 Comments
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