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केवल प्रसाद 'सत्यम''s Blog – March 2013 Archive (32)

सखी! साजन नहि आए रात।

सखी! साजन नहि आए रात।

नयन से नीर,
झर झर टपकत,
सावन झरै बरसात।


सुन्दर-सुन्दर,
सेज सजाई,
करवट करे उफनात।।
सखी! साजन नहि आए रात।

द्वार खड़ी पथ,
उड़त धूल अस,
बड़ा तूफान गहरात।


अब फिर डूबा,
सूरज पछुवा,
फिर-फिर डसे कस रात।।
सखी! साजन नहि आए रात।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 31, 2013 at 2:00pm — 10 Comments

सत्य कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘

सत्य कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘ . नाम दया का तू है सागर......सत्य की ज्योति जलाये........सुख लाये तेरो नाम..! जो ध्याये फल पाये........नाम सुमिरन का साक्षात् प्रभाव और महत्व दोनों का ही अनुभव मैंने सहज में परख लिया है। वास्तव में जो सुख में जीता है, उसे न तो नाम सुमिरन का महत्व समझ में आता है और न ईश्वर से साक्षात् ही कर पाता है। वह केवल अपने स्वार्थ में लिप्त रह कर केवल कपट और मोह मे ही फॅसा रहता है। वास्तविकता तो यह भी है जो व्यक्ति स्वयं को अकिंचन, शून्य…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2013 at 10:40pm — 6 Comments

होली है!...............सरररररररर!!!

होली के हुड़दंग मा, खद्दरवा सत रंग।

आम जनता डर रही, शिव धनुवा जस भंग।।1



हाथी साइकिल चले, गदहा राज चलाय।

हर साख उल्लू बैठा, जनता रही लजाय।।2

होली से होली कहे, रंगों का रस रंग।

कौन खूनी रंग रहा, भारत मन बदरंग।।3



लड़खत दारू ठेलिये, कौन दिशा कहॅ ठांव।

नलियै में औंधे पड़े, धिक्कारे सब गांव।।4



होरियारन से होली, रंगो सजे समाज।

नशा मवाली फाग में,…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2013 at 4:44pm — 3 Comments

:ःजय जय अंजनि लालाःः

चतुष्पदी ,चैापैया. (10, 8, 12 अन्त में दो गुरू)

जय अंजनि लाला, केसर बाला, पवन पुत्र सुखकारी।

तुम बाल प्यारे, शंकर सारे, अद्भुत लीला धारी।।

प्रभु देखि दिवाकर, फलम् समझकर, निगले भा अॅधियारी!

सृष्टि भई काली, ज्योति बिहाली, त्राहि त्राहि मम वारी।।1

छॅाड़े नहि रवि को, बड़े जतन सो, दैव आरत पुकारी।

इन्द्र अकुलाये, बज्र चलाये, हनुमत भय सुधहारी।।

कहॅू शंकर सुवन, केसरि नन्दन, बाल मुकुन्द सुरारी।

देवन्ह सब…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 10:55pm — 9 Comments

मैं हूं मौन!

"मैं हूं मौन!"

मैं कौन हूं ?

मैं हूं मौन!

महिलाओं की चैन लुटती रही

सरे राह।

दामिनी-दिल्ली की अस्मिता बनी

लाचारी।

सड़क पर बिफर गई

बेचारी।

और मैं मोमबत्ती जलाकर देखता रहा!

मैं कायर हूं ? नहीं!

कायरता नहीं मुझमें!

बस उन अबलाओं और अपने घरों की सुरक्षा में

सेंध देखता रहा !

और मैं मौन रहा।1



पुलिस की घूस, ठूंस, लाठी

बेवजह चलते रहे

अविराम!

नौकरशाही घोटाले…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 24, 2013 at 4:35pm — 14 Comments

छन्द

1.किरीट सवैया



कोमल कोपल आमन बीचल, बैठि गयी धुन ताल सुनावत !

आय गयो फिर पीत बसन्तम, प्यार रसाल अलाप लुभावत!!

बागन बीच उड़े तितली मधु, बालक भांवर सो इतरावत !

फूल हँसे विहसे तन औ मन,‘सत्यम‘ ज्ञान विराग लुटावत!!

2.दुर्मिल सवैया



जब कन्त नहि हमरे घर मा, यहु बैरन कोकिल छेड़ रही !

फल फूल फले बगिया वनमा, पिक काक तिलेर चिढाये रही!!

ऋतुराज भले तुम जार मरो, वन .केसर. टेसु जलाय रही!

फिर काम रती धनुवा न चलो, महदेव उमा समुझाय रही!!…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 22, 2013 at 8:12pm — 6 Comments

!!जय हिन्द!!

!!जय हिन्द!!

दुइ-दुइ आॅख करो तो करो तुम
कायरता में छिपाओ नहिं
नजरिया।


दुइ-दुइ हाथ करो तो करो तुम
घमण्ड में सुनाओ नहिं
बड़बतिया।


दुइ-दुइ कृपाण रखो तो रखो तुम
दो धार रखाओ नहिं
कटरिया।


इक-इक कदम बढ़ो तो बढ़ो तुम
गुमराह कर दिखाओ नहिं
चैारहिया।


सत्यम इक धर्म चलो तो चलो सब
वतन खिलाफ बढ़ाओ नहिं
मजहबिया!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2013 at 8:36pm — 5 Comments

हे! गंगा मॅा !!!

चतुष्पदी ,चैापैया.(10, 8, 12 अन्त में दो गुरू)

जय पाप नाशनी जीवन दानी जन मानस हितकारी!

शंकर शीश जटा उलझी सुलझी जस महदेव विचारी!!

कॅापें दिश देवा भय सब भावा सुलोक विस्मयकारी!

श्री शंभु पुरारे नाथ हमारे धावत दीनन वारी!!1



रस रस कर धारा विष तन सारा अमृत चरनहि सुखारी!

तुम दीन दयाला चॅंद सो हाला देवन की महतारी!!

हे!सुरसरि माता दुख हर जाता आवत शरण तिहारी!

तुम जाति धर्म नहि अवगुण जानहि फल जनत बिन…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 19, 2013 at 7:10pm — 7 Comments

बम बम बलवाना बम बम!

जामवंत ने याद दिलाया, सारी शक्ति पास बुलाया!

तुम हो धीर वीर बलवाना, तुम्हरे गुरू सूर्य भगवाना!!

पवन पुत्र तुम वेगि समाना, इन्द्रादि सब करे प्रनामा!

तुम्ह सागर को तालहि मानो, आप ही सकल बृह्महि जानो!1 बम बम..

काल कूट हर अमृत धारो, भूत प्रेत पटक कर मारो!

तुम हो अटल ज्ञान के राशी, दुष्ट दानव सबके गल फाॅसी!!

तुम हो सब संकट से पारा, सब गुन आगर करो विचारा!

लॅाघि करो तुम सागर पारा, जयति राम श्री राम पुकारा!!2 बम…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 19, 2013 at 10:21am — 8 Comments

दुर्मिल सवैया

जब पाप कियो तुम भोर भये, दिन रात भला तुम का करिहो!

सब नाचत - गावत ताल दियो, तुम ताल तलैयन डूब रहो!!

फिर गंग तरंग बहे न बहे, रखि आपन मान बढ़ाय रहो!

इत डारि रहे खर-मैल बढे, उत गंग कषाय बढ़ाय रहो!!1

नित डारत हैं मल नालन कै, नहि दूसर देखि उपाय रहो!

तुम बालक गंग तरंगिनि कै, कलि कालहि मातु लजाय रहो!!

अब तो सिर सौं तुम लाज करो, यह देश तुझे ललकार रहो!

तुम शान कमान धरे उर मा, गण मान कहाय लुकाय रहो!!2

अपनी छतरी अपने लड़के, नहि होत सहाय तलाड़…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 18, 2013 at 9:52pm — 6 Comments

सगर के साठ हजार पुरखे और भागीरथी जी! ‘किरीट सवैया‘

‘साठ हजार मरे पुरखे कहॅ, नाम नहीं कछु जात पुकारत!

देवनदी यदि पैर पड़े तब, मान समान बढ़े निज भारत!!

सोच विचारि करें उर नारद, बात भगीरथ को समझावत!

सारद शंकर शेष महेशहि, को अब जाय मनावहु राजत!!



जाप जपे हरि नाम रटे तप, बीत गये कइ साल युगो दिन!

शंकर होत सहाय नरायन, छोड़ रहे…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 17, 2013 at 11:30pm — 4 Comments

बेरोजगार !!!

बेरोजगार !!!

सुबह के सात बजे थे!

एक ही स्थान पर अट्ठारह चूल्हे जले थे!

कुल मिला कर बीस-पच्चीस मजदूरों का

भोजन तैयार हो रहा था!

पास ही एक सूखे पेड़ से टेक लगाये

बैठा इन्सान

घुटनों पर कुहनी

कुहनी पर तने हाथ की मुट्ठी पर

ठुड्ढी रखे

नजरों को अट्ठारहों चूल्हों की ओर घुमाता

आंसू बहाता

खाली पेट को रोटी और

रोटी से भूखी आत्मा को संतुष्ट करने की

सोच रहा था!

सहसा एक अश्रु बिंदु

मुह के कोर तक पहुंची

झट से इन्सान ने ढुलकते बिंदु…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 17, 2013 at 4:24pm — 4 Comments

छन्द : दुर्मिल सवैया

घन घोर घटा जब से बरसो, वन मोर नचावहिं मोर जिया।

बिहॅसे हरषे तन सींच गयो, जगती तल शीतल मो रसिया।।

बिजली घन बीच हॅसी गरजी, छल छन्द कियो बन गाज गिरी।

हिय जार गयी विष सौतन सी, मन त्रास घनी प्रिय नाथ नही।।1

बरखा बरखै असुआॅ टपकै, जिय शूल धंसे तन आग लगै।।

जर जाइ समूल न आश बंधे, कब आव पिया अब चात कहै।।

जर राख बनी उड़ जाइ चली, पिउ राह बिछी यहु चाह भली।

जहॅ पावॅ धरें हम धन्य लगी, पग धूलि बनी सिर मॅाग भरी।।2

कहॅु नीति कुनीति सुनीति नही, पर…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 9:00pm — 6 Comments

दोहा

(आदरणीया डा0 प्राची सिहं जी के सुझाव के बाद पुनः प्रस्तुत)



भ्रष्टाचार जड़ विकट, माया मन परतोष।

कहे सुने बढ़ जात है, अहम काम मद दोष।।1



पंडित वेद कुरान पाठ, करि सब भये मसान।

नेता भ्रष्ट भय आतंक, सब बनगै श्रीमान।।2



भ्रष्टाचार बन जग गुरु, लूटें देश समूल ।

रामदेव अन्ना लड़े , लिये हाथ मा तूल।।3



जनता निरी गाय-भैंस, लठैत है सरकार।

दूध दुहन को वोट है, फिर पीछे मक्कार।।4



नेता सब ज्रागत भये, सोवत सन्सद बीच ।

जनता…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 6:30am — 5 Comments

दोहा

मन मंगल मन मीत है, मन मारूत मन मीन!

मन मारत मन जीत है, मन मान मन मलीन!!1



पानी पियास हरि कहें, तुरतहि तन में वारि!

तोय भुलावत रोग बढे़, पावत पय उध्दारि!!2



हरि हरि हरिनाम रसना,हर हर भव जस जान!

हरि हर हार जात विधना,हरि नारद अस मान!!3



जपत निरन्तर राम राम, तन मन में सिय राम!

अहम को जय राम कहें, विनय भजे श्री राम!!4



रस रसे रस चाहना, रस रस कर रस जाय!

रस रस कर रस बांटना, रस रस मन हरषाय!!5



हरि अनन्त हरि संत है,…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 5:00am — 3 Comments

पार्थ और केशव

मैं अर्जुन भौतिक अनूसारा। तिरगुण पुट अखण्ड लाचारा।।

नाथ हृदय अति दीर्घ संदेहू। नश्वर देहि आपहु धरेहू ।।

तुम प्रभु सर्व समर्थ सनाथा। अष्ट योग-चैबिस तत्व गाथा।।

त्रिअवस्था अखण्डहि बृन्दा। होइ कोउ तुम्हारा गोविंदा ।।

हम भीरू कल्मष अनुरागी । मेरे ईष्ट कुटुम्ब अभागी ।।

हम गुरू पितु मातु बंधु के हंता।केहि विधि सुफल राज के संता।।

आपहु भौतिक रूप आचारू। गुरू पितु मात बंधु व्यवहारू।।

कस होइ हित बधे कुटुम्बा। क्षत्रिय नाम विलास अचम्भा।।

आपहु अंश-भिन्नांश न जानें ।…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2013 at 7:16pm — 2 Comments

दोहे

राष्ट्र् पिता परमात्मा, परम सनेही जान!
विश्व सकल परिवार है, अन्तरमन लें ठान!!

भाषा तुलसी दास सी, भाव हो शशी सूर !
देश का सम्मान बढे़, संवाद निरमल नूर!!

राष्ट्र् मेरा भारत मा, कमल तिरंगा शेर !
मयूरा नाचत दिल मा, रहा चक्र् को फेर!!

अच्छा संस्कारी देश, भारत जिसका नाम!
सदियों से यह पल रहा,मिला हड़प्पा शान!!
के’पी’सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2013 at 12:38pm — 3 Comments

दोहा/व्यंग



भ्रष्टाचार जड़ विकट, माया-मोह-गठजांेड़।

कहे सुने बढ़ जात है, अहं-विकार-मदलोभ।।

पंडित वेद कुरान पाठ, करि सब हुए मसान।

नेता-भ्रष्टाचार-आतंक, सब बनगै श्रीमान।।

भ्रष्टाचार बन जगदगुरु, लूटे देश समूल ।

रामदेव-अन्ना हजारे, लिए हाथ मा तूल।।

,

जनता निरीह गाय-भैंस, लठैत है सरकार।

दूध दुहन को वोट बैंक, फिर पीछे मक्कार।।

नेता सब ज्रागत भये, सोवत संसद बीच ।

जनता जस जागरण करे, मारे झोंटा खींच।।

बंदर बांट-रेवड़ी बांट, बांट जो जोहे…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 11:17pm — 7 Comments

-::जग मान जरा भव कालहि::-

जग मान जरा भव कालहि! 

’जग’ सागर कै बुल्ला ज्यों, तनिक छुवे मिट जाता है!

अहम ईर्षा लोभ क्षोभ जो, फॅसत निकल नहि पाता है!!

काम-’मान’ घास-पूस सो, यह चिनगी पाय दहकाता है!

मन नहि माने ’जरा’ सुनाये, तब बुध्दि योग उलझाता है!!



गृहस्थ ’भव’ स्वः विदेह जानो, राम नाम गुण गाता है!

केवल इस साधना भक्ति में, सद्गुरू ही पता बताता है!!

मित्र कुटुम्ब ’कालहि’ समान, छिन-छिन भ्रमहि कपट कहिहै!

सत्यम ज्ञान विराग लुटावहिं, जगमा न जरा भव का लहिहै!

सत्यम/मौलिकएवं…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 10:58pm — 1 Comment

बसन्त


सरसों तू क्यों फूली-फूली है, सरसो कि मधुमास रसी!
आमन के बिरवा बौराये गये,फगुआ बयार पगलाये रही।।
पीली-पीली सरसों हरषों ज्यों फगुआ बयार हरहराये रही।
धरती के सूनी आॅचल में बसन्त बनो मुस्कराये रही।।

भौंरे गुंजन कर गाये रहे कलियाॅ-तरूणी इठलाये रही।
पवन मलय मद गंध पिेये,बहकाय तू मस्त झूम रही।।
कोयलिया कूक फिरै वन मा,विरहणियाॅ कन्तन खोज रही।
बगिया फूलन की बेल चढ़ी, पुष्पवाण जियन को भेद रही।।
के पी सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 10:17am — 4 Comments

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