मदिरा सवैय्या (7 भगण +गुरु ) कुल वर्ण 22
चेतन-जंगम के उर में अविराम सुधा सरसावत है
रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल पीर बढ़ावत है
बालक वृद्ध युवा सबके यह अंतस हूक जगावत है
पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है
सुमुखी सवैय्या (7 जगण +लघु+गुरु ) कुल वर्ण 23
मरोर उठी वपु में जब से यह लक्षण भेद बताय गयी
सयान सबै सनकारि उठे तब भावज भी समुझाय गयी
हुयी अब बावरि वात अनंग अनीक अली नियराय गयी
मथै…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 1:00pm — 27 Comments
फिर हुआ सागर-मंथन
नए कल्प में
इस बार रत्न निकले – तेरह
देवता व्यग्र ! विष्णु हैरान !
कहाँ गया अमृत-घट ?
समुद्र ने कहा –
अब वह जल कहाँ
जिसमे होता था अमृत
जिसे मेरी गोद में
डालती थी गंगा
जिससे भरता था घट
अब तो शिव ने भी
दो टूक कह दिया है
नहीं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 5:00pm — 6 Comments
सुना सहसा उसने
और दिल बैठ गया
तड़प रहे अंतस में
नया डर पैठ गया
तकिये पर सिर छिपा
विवश वह लेट गया
आंसुओं की परतें अनगिन
दर्द में समेट गया
अगले रविवार फिर
वही मंजर आयेगा
मौन-प्रेम सिसकेगा
तडपकर मर जाएगा
एक कन्या बेमन से अनचाहा वर वरेगी
प्यार के शव पर ही मांग वह भरेगी
अभी उसके व्याह का…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 7:38pm — 24 Comments
‘दो टिकट बछरावां के लिए’ –मैंने सौ का नोट देते हुए बस कंडक्टर से कहा I
‘टूटे दीजिये, मेरे पास चेंज नहीं है I’
‘कितने दूं ?’
‘बीस रुपये ‘
मैंने उसे बीस रूपए दे दिये और पर्स सँभालने में व्यस्त हो गया I वह रुपये लेकर आगे बढ़ गया I
-'क्या कंडक्टर ने टिकट दिया ?'- सहसा मैंने पत्नी से पूछा i
‘नहीं तो ‘ उसने चौंक कर कहा I तभी बगल की सीट पर बैठा एक अधेड़ बोल उठा –‘टिकट भूल जाइये साहेब , बछरावां के दो टिकट तीस रुपये के हुए उसने आपसे बीस ही तो लिए i दस का…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 21, 2015 at 8:39pm — 19 Comments
दशाश्वमेध घाट पर
कुछ उत्तर आधुनिक भारतीय
कर रहे थे स्नान
शैम्पू और विदेशी साबुन के साथ
दूर –दूर तक फैलकर झाग
धो रहा था अमृत का मैल
गंगा ने उझक कर देखा
फिर झुका लिया अपना माथ
साक्षी तो तुम भी हो
काशी विश्वनाथ !
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 17, 2015 at 4:16pm — 24 Comments
आधी रात
चांदनी और छाँव
तस्करों का हरा-हरा गाँव
जालिमो में कुछ अधेड़
कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़
कुछ घर थे गरीबों के भी
दांतों के बीच जीभों के भी
सचमुच बदनसीबों के भी
आधी रात
चांदनी और छाँव
सन्नाटे में डरा-डरा गाँव
एक गरीब बुढ़िया के द्वार
तेजी से आया इक घुड़सवार
बुढिया की बेटी को…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 10:54am — 14 Comments
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |