"यार,काव्य-गोष्ठी तो बहुत कर लीं पर काव्य-सम्मेलनों से बुलावा नहीं आता |"
"अरे मिट्टी के माध, अच्छी कविता लिखना–पढ़ना ही काफ़ी नहीं|"
"तो !"
"तोता बनना सीखो |"
"कैसे?"
"सज्जन के घर राम-राम |और चोर के घर-माल-माल |और फिर पाँचों अंगुलियाँ घी में | "
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on January 30, 2015 at 10:00am — 16 Comments
घिर आई है शाम
यादें भटके जंगल-जंगल
नींद गई वनवास
अच्छे दिन परदेशी ठहरे
फ़ाग मिलन की आस |
बचपन यादें गहरी रंगी
खेले-कूदे संग
यौवन की लाल चुनरिया
डूबी पीया के रंग |
नंदे-देवर निकले हरजाई
करें ठिठोली छेड़ |
माघ कली झुलस चली
आन करो ना देर |
कीरत अर्जित करते जाते
तीर्थ है किस धाम
छोड़ो-अपनाओं दिल से
जब जोड़ा है नाम |
मीरा जैसा जीवन काटा
रुक्मणी बस…
ContinueAdded by somesh kumar on January 28, 2015 at 8:50am — 10 Comments
अराजक(लघुकथा )
“ अरे !भाई ये रिजर्व कैबिन है ,टिकट वालों का कैबिन पीछे है,वहीं जाओ |”-परेड देखने आए युवक को पुलिस वाले ने समझाते हुए कहा
“ यहाँ की टिकट कैसे मिलेगी ?क्या ज़्यादा पैसे लगते हैं ?”
“ क्या तेरा कोई जान-पहचान वाला मिनिस्टर है या मिनिस्ट्री का कोई अफसर |”पुलिस वाला व्यंग्य में मुस्कुराया
“नहीं!”वो मायूस हो गया
“ तो भाई पीछे जा या घर जाकर टीवी पर देख |”-पुलिस वाला खिसियाते हुए बोला
“ पर !”उसने उसकी बात काटते हुए कहा
“…
ContinueAdded by somesh kumar on January 26, 2015 at 6:30pm — 9 Comments
रात के ९ बजे थे |खाना खाकर विनीत बिस्तर पर लेट गया और radio-mirchi on कर दिया- “चूड़ी मजा ना देगी,/कंगन मजा ना/देगा, तेरे बगैर साजन /सावन मजा ना देगा"
तभी खिलखिलाती हुई मुग्धा ने कमरे में घुसकर ध्यान भंग किया –“ चाचा-चाचा, अदिति दीदी कुछ कहना चाहती है
“ हाँ बेटा बोल ,” विनीत ने कहा |
“ चाचा मुझे चाची के चूड़ीदान से कुछ रंग-बिरंगी चूड़ियाँ लेनी है वो सहमते हुए बोली |”
विनीत ने अदिति को देखा, एकबार आलमारी की तरफ देखा जहाँ निम्मा का चुड़ीदान रखा था | कुछ देर चुप…
ContinueAdded by somesh kumar on January 24, 2015 at 11:30am — 14 Comments
चुनावी जिन्न(कविता )
जांचे परखें और चुनें
चलों नया देश बुनें
रूढ़ परिपाटी हों छिन्न
सच्च हों ,अच्छे दिन |
ये भाषण का व्यवहार
और सतरंगी इश्तिहार
कायाकल्प हो सर्वांगीण
ना केवल चाय नमकीन |
बंद तोड़फोड़ और धरने
सियासी नफ़ा आमजन मरने
पहुंच जाएँगे बुलंदी पर
चटाकर हमें जमीन |
झाड़ू हाथी कमल हाथ
क्रांति जाति धर्म सब-साथ
एक थैली के ही चट्टे-बट्टे
देखों ना इन्हें भिन्न |
अज़ीब-अज़ीब…
ContinueAdded by somesh kumar on January 22, 2015 at 10:30am — 8 Comments
अच्छे दिन
दिखे हैं अभी इश्तिहारो में अच्छे दिन|
या सुनता हूँ बस नारों में अच्छे दिन|
सड़क पर बेचता है खिलौना अभी भी बच्चा
तेल सस्ता हुआ तो कारों के अच्छे दिन|
दिहाड़ी- मजदूर चौराहे पर खड़ा बेरोजगार
सजी दूकानें हैं तो बाजारों के अच्छे दिन|
घोटालेबाज बरी , अफसर की तब्दीली
खूब समझते हैं इशारों के अच्छे दिन|
किसान करे खुदखुशी, हाथ बस मायूसी
हैं खेत हड़पते सिसियाते अच्छे दिन|
पी. के. पर विवाद, ऍम.एस.जी पर सेंसर…
ContinueAdded by somesh kumar on January 18, 2015 at 1:31pm — 8 Comments
नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा
तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा
अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी
पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी
जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |
नाम तुम्हारे..........
गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला
बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला
जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |
नाम तुम्हारे ..........
खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी…
ContinueAdded by somesh kumar on January 13, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
भूमिका(कविता)
अश्रु-पूरित चन्दन से भी
अगर टीकूँ|
है असम्भव अब तुम्हारा
लौट आना||
मैं इस मंच पर अभी कुछ
और खेलूँगा|
तुमकों जो अभिनय जँचे
तो मुस्काना ||
था टिका सम्बन्ध जिस पर
घुना वो आलम्ब|
हो सके तो उसपे कुछ
रेह लगाना||
हो सघन तिमिर जब कोई
राह ना सूझे|
तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त
टिमटिमाना |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by somesh kumar on January 11, 2015 at 1:23am — 6 Comments
पूर्ण नहीं हूँ मैं
मुझे उपमा ना बना
प्यार को प्यार रहने दे
इसे रिश्ता ना बना |
आदमी मैं भी हूँ
जज्बात समझता हूँ
हिकार ना कर उसकी
मुझे देवता ना बना |
एक फ़ासले के बाद
लौटना ठीक नहीं
मुझे मंजिल ना समझ
उसे रस्ता ना बना |
किनारे मैं हूँ खड़ा
मझदार में तू
कोई तो फैसला कर
उसे उलझा ना बना |
.
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )
Added by somesh kumar on January 10, 2015 at 3:00pm — 7 Comments
तू देव रूप है मेरे लिए ---
मुझे तराशा है तेरे प्यार ने
मुझपे ऐतबार कर
तू देव रूप है मेरे लिए,मेरी
पूजा स्वीकर कर
मैं तो दलदल था,कमल पुष्प
खिलाए तुमने मुझमें
मृत था मेरा ये उर
एहसास पुनः जगाए तमने मुझमें
उठ,खड़ी हो,मजबूत बन
अपनी कोशिश ना निराधार कर
तू देव रूप है मेरे लिए -----------
जब सारे ज़माने ने
मुझ से मुँह फेर लिया
जब सघन तिमिर ने
मुझ को घेर लिया
तुम आई मेरी ज़िन्दगी…
ContinueAdded by somesh kumar on January 6, 2015 at 11:00am — 8 Comments
बिना तुम्हें बताए
अजीब प्रश्न हैं तुम्हारे
यूँ जैसेकि चक्रव्यूह
दिल-दिमाग भिड़ गए
बोलो किस माध्यम से उत्तर दूँ|
सच है! तुम्हारा जाना खलेगा
क्योंकि तुम्हारे जाने से बनेगा
एक शून्य |
जिसे सिर्फ़ तुम भर सकती हो
और मेरे आस-पास जो उदासी है
उसमें कलरव कर सकती हो||
पर तुम्हारा जाना भी बुरा नही है
क्योंकि मैं इससे व्यर्थ के सपने
देखने से बच सकता हूँ
अपनी दुनिया नए ढंग से रच सकता…
ContinueAdded by somesh kumar on January 1, 2015 at 11:30pm — 4 Comments
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