For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 73 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !

दिनांक 20 मई 2017 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 73 की समस्त प्रविष्टियाँ 
संकलित कर ली गयी हैं.


इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे -

सार छन्द और कुण्डलिया छन्द.


वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के अनुसार अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

*******************************************

१. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
कुंडलिया [ प्रथम प्रस्तुति] 

चंदू हूँ मैं प्रौढ़ भी, मारो नहीं हुजूर।

परम भक्त हनुमान का, छेड़ छाड़ से दूर॥

छेड़ छाड़ से दूर, रोमियो मुझे न कहना।

चप्पल यूँ ना तान, बंधु मैं तेरा बहना॥

ब्रेक हो गया फेल, न समझो मुझको मंदू।

सिर पर आधा चाँद ,करो मत पूरा चंदू॥............... (संशोधित)

 

सार छंद

पाँव पड़ूँ मैं घूँघट वाली, दोष नहीं पर मेरा

आँचल  मुझसे लिपट गया तो छाया घना अँधेरा

 

सही समय पर ब्रेक लगाया, सत्य वचन कहता हूँ।

हाथ जोड़ मैं शीश झुकाऊँ, चप्पल से डरता हूँ॥

मैं बूढ़ा बदमाश नहीं हूँ, मार मुझे ना माई।

तू मेरी प्यारी बहना मैं, तेरा चंदू भाई॥

तीन रंग ट्रैफिक सिग्नल सी, साड़ी में जँचती हो।

तीखे तेवर कर में चप्पल, रण चंडी लगती हो॥

******************
२. आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी
कुण्डलिया छंद
सर पर मँजनूँ के रखी ,इसने चप्पल तान I
समझा था अबला जिसे ,वो निकली सुल्तान II
वो निकली सुल्तान, गजब है चूड़ी पायल I
ले घूँघट की ओट ,करे सौ नंबर डायल II
करती है इन्कार, नहीं रहना अब डरकर I
लोक लाज का बोझ ,सदा क्यों इसके सर पर II

मनमानी के छोड़ दे ,लेना अब तू ख़्वाब I
जिल्द पुरानी है मगर ,अन्दर नयी किताब II
अन्दर नयी किताब ,बदल ले चश्मा तू अब I
हमें बाँचना छोड़ , समझ ना खुद को तू रब II
हो घूँघट या जींस ,आज ये सब ने ठानी I
नहीं चलेगी और ,पुरुष की अब मनमानी II
******************
३. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
दो कुंडलिया -
रे मानव है सामने , अब दुर्गा अवतार
हाथ खड्ग चाहे नहीं, पीछे है सरकार
पीछे है सरकार, लिये कानूनी फंदे
कुकुर घसीटी मान ! वसन कर देगी गंदे
अच्छा है कर जोड़, मांग माफी ऐ दानव
है दुर्गा अवतार , सामने तेरे मानव

चप्पल सोहे हाथ इक, फोन धरे इक हाथ
गंजे ! बेहतर है यही, आज झुका दे माथ
आज झुका दे माथ, लगे.. सर, पाँवों धरना
खतर नाक है राय, मगर तुम फालो करना
सुन भाई दिल फेंक, कहीं सूजे ना टक्कल
एक हाथ में फोन , सजे दूजे में चप्पल
***************************************
४. आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी
कुंडलिया
1-प्यारे चलती राह है,मत कर तू यह काम
होता है बद काम का बहुत बुरा अंजाम
बहुत बुरा अंजाम,देख होगी रुसवाई
तुझको शायद बात,हमारी समझ न आई
कहे यही तस्दीक़,उठा कर चप्पल मारे
लड़की को मत छेड़, बाज़ आ जा तू प्यारे

 

2-मनमानी तू छोड़ दे ,खेल न ऐसा खेल
छेड़ छाड़ भी जुर्म है,हो जाएगी जेल
हो जाएगी जेल,निकल जा नज़र बचाके
चप्पल अपनी मार,न दे वह तुझे उठाके
कहे यही तस्दीक़,लगे लड़की अनजानी
मत कर तू नादान,जान कर यह मनमानी

 

सार छन्द

1- छन्न पकैया छन्न पकैया,कितना सुंदर मंज़र
खड़ी सामने रंगीले के,लड़की चप्पल लेकर

2- छन्न पकैया छन्न पकैया,मची नगर में हलचल
हाथों में है घूँघट वाली,के मोबाइल चप्पल

3- छन्न पकैया छन्न पकैया,साहस खूब दिखाया
छेड़ छाड़ करने वाले को,अच्छा सबक़ सिखाया

4- छन्न पकैया छन्न पकैया,यह है घूँघट वाली
लेकिन वक़्त बुरा जब आए, बन जाए मां काली

5- छन्न पकैया छन्न पकैया,देखो पाक नज़र से
मां बेटी बहना बीवी है,जो निकली है घर से

6- छन्न पकैया छन्न पकैया,यही सज़ा है सुन्दर
हाथों को जोड़े बैठा है,वह नीचे करके सर

7- छन्न पकैया छन्न पकैया,इनको कौन सताए
ऐसा अगर करेगा कोई,हवा जेल की खाए
***************************
५. आदरणीया छाया शुक्ला जी
कुंडलिया -
तानी चप्पल मरद पे, उत्तर देगा कौन |
कलियुग हँसता खेलता , सज्जन साधे मौन ||
सज्जन साधे मौन , आह ऐसा दिन आया |
बहू उठाये हाथ , श्वसुर ने शीश झुकाया |
“छाया” अधर्म घोर, पाप करता मनमानी
खड़ा बड़ा है प्रश्न , बहू क्यों चप्पल तानी ||
 
सार छंद -
छन्न पकैया छन्न पकैया, करता क्यूँ मनमानी |
बड़े बड़े पिटते हैं अब तो, बहू ने चप्पल तानी ||
छन्न पकैया छन्न पकैया,छोड़ दे अब नादानी |
सबको रस्ता देना भैया , करो न आनाकानी ||
छन्न पकैया छन्न पकैया, शर्म लाज धो डाला |
बचेगा अब तू कैसे भैया , मुँह होगा अब काला ||
छन्न पकैया छन्न पकैया, नारी नहीं बिचारी |
बदल दिया है समय इसे तो , ये ना माने हारी ||
***********************
६. आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी
सारी पहने लहरिया, घर से निकली नार।
रीत रिवाजों में फँसी, लम्बा घूँघट डार।
लम्बा घूँघट डार, फोन यह कर में धारे।
किसकी नहीं मजाल, हाथ इज्जत पर डारे।
अबला इसे न जान, लाज की खुद रखवारी।
कर देती झट दूर, अकड़ चप्पल से सारी।।
*************************
७. आदरणीय सीएम उपाध्याय ’शून्य आकांक्षी’ जी
(1)
सार छंद
छन्न पकैया छन्न पकैया, आजा घूँघट वारी
सैर कराऊँ मंसूरी की, मैं दिल वाला प्यारी

छन्न पकैया छन्न पकैया, बुझा प्यास तू मोरी
मैं तेरा मतवाला भँवरा, पीने दे रस गोरी

छन्न पकैया छन्न पकैया, बुड्ढे खूसट आ जा
भाई तेरी मुझे खोपड़ी, आज बजाऊँ बाजा

छन्न पकैया छन्न पकैया, क्रोधित नारी का मन
ले उतार कर चप्पल उसने, मारी तभी दनादन

छन्न पकैया छन्न पकैया, तब महिला के आगे
हाथ जोड़कर देखो कैसा, गिरगिट माफी माँगे

(2)
कुण्डलिया
गोरी घूँघट काढ़ि के, चली जा रही नेक |
तभी राह में मिल गया, कामी लम्पट एक ||
कामी लम्पट एक, बोलता आ जा रानी |
मैं हूँ सच्चा मर्द, व्यर्थ क्यों करे जवानी ||
कहे 'शून्य' कविराय, कटी संयम की डोरी |
माफी माँगे दुष्ट, मारती चप्पल गोरी ||
***************************
८. आदरणीया राजेश कुमारी जी
दो कुण्डलिया
भारी गलती हो गई, अब खायेगा मार|
टूट पड़ी चप्पल लिए ,घूँघट वाली नार||
घूँघट वाली नार,क्रोध की भड़की ज्वाला|
हाथ जोड़ मक्कार, बना है भोला भाला||
बीच सड़क पर हाय, उतारी ऐंठन सारी|
क्षमा माँगता मर्द, करूँ, ना गलती भारी||

छेड़ा इसने नार को, इसी लिए ये हाल|
तना तना कर मारती,चप्पल लेकर लाल||
चप्पल लेकर लाल,लहरिया पहने सारी|
घूँघट मुख पर डाल,लिए मोबाइल नारी||
चौराहे के बीच,सबक दे जाय बखेड़ा|
भुगतोगे परिणाम,अगर नारी को छेड़ा||
**********************
९. आदरणीय सतविन्दर कुमार जी
कुण्डलिया

पीता जो दारू रहे,भर-भर खूब गिलास
सुख का वह परिवार के, करता जाता ह्रास
करता जाता ह्रास,आस उसकी सब खोती
लेकर चप्पल हाथ,घरैतिन चंडी होती
सतविन्दर कविराय,व्यक्ति वह सुख से जीता
तजकर मदिरापान,प्रेम रस को जो पीता।

डर-डर कर जिन्दा रहें,कम हैं ऐसी नार
नर ने धमकी दी नहीं,वे कर डालें वार
वे कर डालें वार, हाथ में चप्पल आएँ
बेलन है हथियार,सबक जिससे सिखलाएँ
सतविन्दर कविराय,चलो नर ज़रा सँभलकर
समझी अगर न बात,जियोगे तुम डर-डर कर .................. (संशोधित)

 

भाड़ा पहले तय किया,फिर वह हुई सवार
रिक्शा पर थी चल रही,इक भोली-सी नार
इक भोली-सी नार,यही चालक ने सोचा
बीच सड़क पर रोक,किया जाने क्या लोचा
सतविन्दर कविराय,उसे बस वहीं लताड़ा
मारी चप्पल चार,दिया फिर उसे न भाड़ा

 

द्वितीय प्रस्तुति
सड़क छाप यदि सोच रही तो,होगा अच्छा कैसे? ............... (संशोधित)
चौराहे पर पिट जाएगा,समझ न ऐसे-वैसे
घूँघट मुँह पे ढाँप रहीं हों,या हों पैंटों वाली
अब की बार नहीं सुन सकती,फब्ती वाली गाली

 

मत बन मजनूँ का भाई तू,तेरी नहीं लुगाई
चप्पल से वह फसल उजाड़ी,सिर पर रखी उगाई
टोका जो तूने रस्ते पर,फब्ती कस कर भारी
करे वार टकले पर देखो,थकती कब है नारी

 

ऐसे ही बस टोक दिया था,नहीं जानता था ये
अब नारी सबला होती है,नहीं मानता था ये
अब पैरों में लोट रहा है, माफी माँग रहा है
घुटनों के बल झुका हुआ है,गर्दन टाँग रहा है।

नार नहीं अब रुकने वाली,फोन हाथ में रखती   ...................... (संशोधित) 

जो करता है तंग उसे वह,चले दिखाती सख्ती
कब पोलिस को फोन मिलाना,उसको सही पता है
छेड़ रहे हैं जो नारी को,उनकी बड़ी ख़ता है।
*****************
१०. आदरणीया कल्पना भट्ट जी
सार छंदछन्न पकैया छन्न पकैया,भोली भाली नारी
घूँघट ओढ़े जब भी आती,लगती कितनी प्यारी

छन्न पकैया छन्न पकैया,लगती है दिल जानी
लंगड़ी लूली हो भले ही,या हो अंधी कानी

छन्न पकैया छन्न पकैया,सुधरो अब तुम भैया
गये ज़माने छोड़ो जी अब,मारे है ये गैया

छन्न पकैया छन्न पकैया , मैं घूँघट में रहती
गये ज़माने चुप रहने के , जब थी सब कुछ सहती

छन्न पकैया छन्न पकैया,ऐसी है ये नारी
गर कोई छेड़े जो उसको,पड़ जाती है भारी

छन्न पकैया छन्न पकैया,हाथों में ले चप्पल
सर को तबला समझ बजाती, मच जाती है हलचल।।

(संशोधित)

**********************
११. आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
सार छंद
1
आते जाते रस्ते में जो, कल तक थी दुखियारी
खूब मनचला बनकर तूने, जिस पर फब्ती मारी
अबला हूँ कह सह लेती थी, मन की पीड़ा सारी
आज पड़ी है सबला बनकर, तुझपर ही वो भारी
2
नारी को कमजोर न समझो, मत दो उसे चुनौती
छेड़छाड़ को समझो मत तुम, होकर निडर बपौती
बने आचरण अच्छा जाकर, मंदिर करो मनौती
वरना जूती ही पाओगे, अब तो नित्य फिरौती
3
आते जाते छेड़ू उसको, देखो मत यह सपना
स्वीकार नहीं नारी को अब, जुल्म किसी का सहना
सीखो जग में हर नारी को, माता बेटी कहना
नारी का सम्मान करो नित, मान बचाओ अपना
*********************
१२. आदरणीय सतीश मापतपुरी जी
सार छंद
नारी को साड़ी में देखा , निर्जन पथ को ताका ।
मौका है चौका जड़ने का , आगे बढ़ गया बांका ।
घुंघटा से चिमटा निकलेगा , सोचा ना मरदाना ।
घिग्घी बंध गयी देख सामने , चण्डी बनी जनाना ।

हाथ जोड़कर शीश झुकाकर , रहम का फेका पासा ।
ताड़ बने ना तिल सोचकर , बरफ बनी पिपासा ।
हाथ में चप्पल खंजर लागे , सर की शामत आई ।
नमस्कार बहना कहकर के , अपनी जान बचाई ।
**********************
१३. आदरणीय अशोक रक्ताळे जी
कुण्डलिया
कर जोड़े मांगे क्षमा , ऊँची करके पीठ |
खूसट है बुड्ढा बहुत, और बहुत है ढीठ ||
और बहुत है ढीठ , मार खाकर मानेगा,
गड़ा भूमि में शीश, सत्य क्या पहचानेगा,
घूँघट वाली नारि, सोचती दूँ क्या सिरपर,
धर चप्पल दो-चार, गिरेगा खाकर चक्कर ||

आयी घर से बाप के, छोड़ रही अब साथ |
बैठ बहू के सामने , जोड़े ससुरा हाथ ||
जोड़े ससुरा हाथ , बहू से बोले घर चल,
मत री गोरी भाग, हाथ में लेकर चप्पल,
सचमुच मेरी साख , गिरेगी बनी बनाई,
बोलेंगे सब लोग , बहू ये कैसी आयी ||

सार छंद

चप्पल-चप्पल हुई धुनाई, काम अजब कर डाला |
सही हाथ में आज पड़ा है , बाबू रिक्शावाला ||
बोल रही है मैडम खुद भी, लगता भोला-भाला |
लेकिन पर्स उड़ाया इसने, पल में डाका डाला ||

आज नहीं छोडूंगी इसको, बोली घूँघट वाली |
बात-बात पर पूरे रस्ते , देता आया गाली || ............... (संशोधित)
चाँद निकल आया है आधा, तब भी करता चोरी |
माँ-बहनों को देख अकेली, करता सीना जोरी ||

हाथ जोड़ ले नाक रगड़ ले, उसकी वो ही जाने |.............. (संशोधित)
मार-मार कर ले जाऊँगी , मैं तो इसको थाने ||
अक्ल नहीं आएगी तबतक, ये डंडे खायेगा |
ऐसे ही ये रिक्शेवाला , रास्ते पर आयेगा ||
************************
१४. आदरणीय समर कबीर जी
सारछन्द
पहले मैं इस दुविधा में था,भाव समेटूं कैसे ।
सारछन्द लिख डाले इतने,आख़िर जैसे तैसे ।। 

 

क़ब तक ऐसे कष्ट सहेगी,भारत की ये नारी ।
आख़िर किस दिन हम समझेंगे,अपनी ज़िम्मेदारी ।।

 

औरत की इज़्ज़त क्या होती,ज़रा इसे समझाओ ।
खड़े तमाशा देख रहे हो,अपना फ़र्ज़ निभाओ ।।

 

हाथ जोड़ कर बैठा है क्यों,पॉँव पकड़ ले इसके ।
चप्पल से ये मारेगी तो,रह जायेगा पिस के ।।

 

चाँद निकल आया है सर पर,फिर भी समझ न आई ।
लगता है पहले भी तूने,मार बहुत है खाई ।।

 

नादाँ जिसको समझ रहा था,अबला है ये नारी ।
पहले ये मालूम नहीं था, पड़ जायेगी भारी ।।
**********************

Views: 3578

Replies to This Discussion

श्रद्धेय सौरभ सर सादर नमन!छंदोत्सव 73 के सफल संचालन के लिए हार्दिक बधाई एवं त्वरित संकलन के लिए सादर आभार।
पीता जो दारू रहे,भर-भर खूब गिलास
सुख का वह परिवार के, करता जाता ह्रास
करता जाता ह्रास,आस उसकी सब खोती
लेकर चप्पल हाथ,घरैतिन चंडी होती
सतविन्दर कविराय,व्यक्ति वह सुख से जीता
तजकर मदिरापान,प्रेम रस को जो पीता।

डर-डर कर जिन्दा रहें,कम हैं ऐसी नार
नर ने धमकी दी नहीं,वे कर डालें वार
वे कर डालें वार, हाथ में चप्पल आएँ
बेलन है हथियार,सबक जिससे सिखलाएँ
सतविन्दर कविराय,चलो नर ज़रा सँभलकर
समझी अगर न बात,जियोगे तुम डर-डर कर

पहली दोनों कुण्डलियाँ इनसे विस्थापित कर कृतार्थ करें,
सार छ्न्द में हरी पंक्तियों का परिमार्जन निम्न है:

1. सड़क छाप यदि सोच रही तो,होगा अच्छा कैसे?
2. नार नहीं अब रुकने वाली,फोन हाथ में रखती
सादर निवेदन।

आदरणीय सतविन्द्र जी, यथा निवेदित तथा संशोधित 

सादर

सादर हार्दिक आभार संग नमन श्रद्धेय सरजी!

परम आदरणीय मंच संचालक सौरभ जी सादर प्रणाम 

      "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 73 " के सफल संचालन  एवं त्वरित संकलन हेतु सादर बधाई प्रेषित है.  मुझे खेद है की, व्यस्तता  के कारण इस आयोजन में  मैं सहभागी नहीं हो सका इसके लिए आप सबका क्षमा प्रार्थी हूँ.  आज अवकाश का दिन है पटल पर  समस्त प्रतिभागियों की उत्कृष्ट रचनाओं को पढकर काव्य आनंद की अनुभूति के साथ साथ  कुछ सिखने और  समझने का भी अवसर मिला.  अतएव समस्त रचनाकारों को उनकी उत्कृष्ट प्रस्तुति हेतु  हार्दिक बधाई एवं मंच के प्रतिआभार व्यक्त करता हूँ. 

सादर 

आदरणीय सत्येन्द्र भाईजी, आप छंदोत्सव के अन्योन्याश्रय से भाग हो गये हैं. आपकी कमी हमें वाकई खली. परन्तु, इतना हम अवश्य आश्वस्त थे कि बिना किसी आवश्यक कार्य के आप इस आयोजन से दूर नहीं हो सकते थे. 

हार्दिक धन्यवाद

सादर

मुहतरम जनाब सौरभ साहिब,ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव अंक-73 के त्वरित संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

आपसे मिला उत्साहवर्द्धन निरंतर प्रवहमान रखता है, आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी 

शुभेच्छाएँ 

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 73 की प्रविष्टियों का चिन्हित संकलन की प्रस्तुति के लिए आपका हार्दिक आभार एवं सफल संचालन के लिए हार्दिक बधाई. 

 सार छंदों की मेरी प्रस्तुति में //हाथ जोड़ ले नाग रगड़ ले// इस पंक्ति में हुई टंकण त्रुटि "नाग" की जगह "नाक" करने की कृपा करें. 

कल मैं पुनः रचना पर उपस्थित नहीं हो सका और यही कारण है की आपकी प्रेरणादायी और आदरणीय गिरिराज भंडारी जी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रियाओं पर आभार व्यक्त नहीं कर पाया. मैं आप दोनों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ.  सादर.

ओह ! सार छंद में ही एक त्रुटि और रह गई.  जिसमें सुधार अपेक्षित है //देते आया गाली// इस पंक्ति में आये शब्द 'देते' के स्थान पर 'देता' करने की भी कृपा करें.  सादर प्रणाम.

आदरणीय अशोक भाई जी, आपके सहयोग के प्रति हम आभारी हैं. आपकी पंक्तियों को संशोधित कर दिया गया है. 

सादर

आदरणीय सर

कृपया इस संशोधित रचना को प्रस्थापित कर कृतार्थ करें ।

सार छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया,भोली भाली नारी
घूँघट ओढ़े जब भी आती,लगती कितनी प्यारी

छन्न पकैया छन्न पकैया,लगती है दिल जानी
लंगड़ी लूली हो भले ही,या हो अंधी कानी

छन्न पकैया छन्न पकैया,सुधरो अब तुम भैया
गये ज़माने छोड़ो जी अब,मारे है ये गैया

छन्न पकैया छन्न पकैया , मैं घूँघट में रहती
गये ज़माने चुप रहने के , जब थी सब कुछ सहती

छन्न पकैया छन्न पकैया,ऐसी है ये नारी
गर कोई छेड़े जो उसको,पड़ जाती है भारी

छन्न पकैया छन्न पकैया,हाथों में ले चप्पल
सर को तबला समझ बजाती, मच जाती है हलचल।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service