सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ संतावनवा आयोजन है.
इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है।
इस बार छंद है - दोहा छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 जुलाई’ 24 दिन शनिवार से
21 जुलाई’ 24 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
दोहा छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20 जुलाई’ 24 दिन शनिवार से 21 जुलाई’ 24 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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Replies are closed for this discussion.
आदरणीय समर कबीर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। अवाम वाले दोहे को कुछ यूं सुधार लूंगा।
कसते धूर्त नकेल जब, सोते रहे अवाम।/बस सोते जन आम/ सोता सकल जहान/सोते रहे तमाम/सोते सब नादान
मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार। सादर
'सोते रहे अवाम' उम्द: सुधार है ।
हार्दिक आभार। सादर
पहले दोहे के सम चरण को दूसरे दोहे के विषम चरण में ढाल देने का आपका ये प्रयोग/अंदाज बहुत मुग्धकारी है आदरणीय मिथिलेश जी और कहन की तो बात ही क्या कहें..वाह। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
आदरणीया प्रतिभा जी आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर खुशी हुई, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब, नमन !
अद्भुत प्रवाहमय दोहा-छंदावली रची आपने और पाँचवे दोहे के बाद जो प्रयोग हुआ है, वह अतिशय सुन्दर है, हार्दिक बधाई स्वीकार कर कृतार्थ करें, सादर !
आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपको यह प्रयास पसंद आया जानकर खुशी हुई। मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर
हो जाता है अस्त जब, सूरज, ढलती शाम।
लोग करें सब शाम को, बस ठेके के नाम।
बस ठेके के नाम पर, बिक जाते मरदूद।
खो देते हैं यूं सभी, अपना सकल वजूद।...........सही है नेताओं को दोष देने से पहले स्वयं के दोष देखना भी आवश्यक है.
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार आपने राजनीति में नेता और मतदाता दोनों को एक ही चश्मे से देखा है अपने दोहों में. सिंहावलोकन के प्रयोग ने दोहों को और भी चित्ताकर्षक बना दिया है. इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आदरणीय अशोक रक्ताले जी, आपको यह प्रयास पसन्द आया, जानकर खुशी हुई। मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर
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